रिश्तों की रेल
हम दोनों,
जैसे रेल की दो पटरियां..
दूर तक चलतीं है साथ,
मगर नहीं होता है,
साथ होने का एहसास...
ना ही है पास आने की कोई चाह,
ना ही है दूर जाने की राह...
चाहे हो वह दिन का उजाला,
चाहे हो वो काली रात स्याह.
हम दोनों चलतें है एक साथ....
किसी ने एक पत्थर मारा तो,
दर्द की आवाज दूर तक जाती है..
हमारे रिश्तों की रेल भी तो,
इन्ही पटरियों से हो कर आती है..
हम दोनों ...
जैसे रेल की दो पटरियां..
बहुत ही दर्द भरी और जीवंत कविता
जवाब देंहटाएंगाड़ी तो दोनों पटरियों के होने पर ही चलती है। इसलिए पटरियों को भी पटरी बैठानी पड़ती है। और तब रिश्तों की रेल दौड़ पड़ती है।
जवाब देंहटाएंअच्छे प्रतीक का प्रयोग किया गया है इस कविता में।
हम दोनों ...
जवाब देंहटाएंजैसे रेल की दो पटरियां
bahut khoobsurat tulna......
बहुत ही सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंsach kaha .bahut sundar
जवाब देंहटाएंसधे हुए ,प्रभावित करते शब्द,बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ..
जवाब देंहटाएंकृपया समय निकालकर हमारे मंच सुव्यवस्था सूत्रधार मंच पर आयें और हमारा उत्साहवर्धन करें..
सामाजिक धार्मिक एवं भारतीयता के विचारों का साझा मंच..
जिंदगी ऐसी ही है......
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
शुभकामनाएं आपको..........
बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर शब्द चयन,
आभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना..अंतस का दर्द बहुत प्रभावी ढंग से उकेरा है..
जवाब देंहटाएंसौ फीसदी सही बात.....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब -- भावमय रचना के लिये बहुत बहुत बधाई
बहुत ही गहरे जज्बात हैँ... सुन्दर कविता।
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