ये शब्द मेरे हैं अमर सदा,
ये शब्द नहीं मर सकतें हैं...
हर बार इन्ही शब्दों ने मुझे,
निज संजीवन से जिलाया है...
निष्प्राण सरीखी काया को,
फिर विजय कवच पहनाया है.......
हर बार इन्ही शब्दों ने मुझे प्रेरणा दी है....
इन रिश्तों के कोलाहल में,
अपने मन की कुछ कहने की
अपने मन की कुछ करने की….
इन शब्दों की जननी पीड़ा,
पीड़ा के उर से ये निकले..
ये शब्द मेरे प्रह्लाद सरीखे
हर अग्निपरीक्षा में हैं खरे…..
इन शब्दों की ही महिमा से,
मानवता का है कलुष धुला..
ये शब्द बन गए नीलकंठ,
मुझको पीड़ा का गरल पिला….
इस जलधि शब्द के ये प्रवाह
हर बार मुझे ये कहते हैं..
ये शब्द मेरे हैं अमर सदा,
ये शब्द नहीं मर सकतें हैं….
ये शब्द नहीं मर सकतें हैं...
हर बार इन्ही शब्दों ने मुझे,
निज संजीवन से जिलाया है...
निष्प्राण सरीखी काया को,
फिर विजय कवच पहनाया है.......
हर बार इन्ही शब्दों ने मुझे प्रेरणा दी है....
इन रिश्तों के कोलाहल में,
अपने मन की कुछ कहने की
अपने मन की कुछ करने की….
इन शब्दों की जननी पीड़ा,
पीड़ा के उर से ये निकले..
ये शब्द मेरे प्रह्लाद सरीखे
हर अग्निपरीक्षा में हैं खरे…..
इन शब्दों की ही महिमा से,
मानवता का है कलुष धुला..
ये शब्द बन गए नीलकंठ,
मुझको पीड़ा का गरल पिला….
इस जलधि शब्द के ये प्रवाह
हर बार मुझे ये कहते हैं..
ये शब्द मेरे हैं अमर सदा,
ये शब्द नहीं मर सकतें हैं….