काफी दिनों से इस विषय पर कुछ लिखने को सोच रहा था..
हालाँकि माँ से सवाल शायद निकृष्टता की श्रेणी का कृत्य हो सकता है..मगर उस पीड़ा का क्या जो महाभारत काल से चली आ रही है..कभी कर्ण के रूप मे कभी आज के अनाथालयों मे पलते बच्चों के रूप में………
विषय पर लिखना कठिन था क्यूंकि ये किसी प्रेमी या प्रेमिका के ह्रदय की विरह वेदना नहीं है जो शब्दों में उकेर दी जाए.. विषयवस्तु की ये पीड़ा तो अनंत कल से चली आ रही जिसकी अनुभूति हर गुजरते हुए दिन के साथ कटु और असह्य हो जा रही है..दूसरी तरफ इस पीड़ा के चित्रण में माँ की निर्विवाद सत्ता के चरित्र चित्रण के साथ भी न्याय करना था.. मैने अपना प्रयास किया है…………
इस पीड़ा को समझने का… माँ की निर्विवाद सत्ता से प्रश्न करने का..
माँ से कुछ सवाल-एक अनाथ के माँ तू विश्वजननी है
तेरी महिमा से कैसे कर सकता इंकार
किताबों में पढ़ा,लोगों से सुना
माँ की ममता,माँ का त्याग,माँ की पीड़ा
ये सब तो सत्य है माँ,शाश्वत सत्य
फिर हे माँ कैसे मैं करूँ
तुमसे कुछ प्रश्न,
जिनकी पीड़ा है,
असीमित अपार……
माँ तेरी महिमा से कैसे कर सकता इंकार……
माँ अभी मै बच्चा हूँ,अक्सर जब ठंढ लगती है,
या कोई तेज आवाज कानों को डरा जाती है,
तब ढूंढ़ता हूँ तुझको,
अनाथालय की सीढियों पर..
कभी कभी उस कूड़ेदान में भी,
जिसे मेरे साथ का बच्चा कहता है..
वो कूड़ेदान तेरी माँ है, तू उसमें ही मिला था..
हर बार माँ मेरी खोज,
कूड़ेदान से टकराकर,
अनाथालय की सीढियों पर वापस आ जाती है..
फिर भी माँ तेरे ममतामयी स्पर्श की अतृप्त इच्छा में
रात रात भर उस कूड़ेदान मे छिप जाता हूँ..
उस नश्तर सी चुभती ठंढक में भी,
तेरा कोमल स्पर्श पाता हूँ..
तेरे स्पर्श की इस मृगमरीचिका में भी
पाता हूँ मैं सुख अपार
माँ तेरी महिमा से कैसे कर सकता इंकार……
माँ मैं अब बड़ा हो रहा हूँ……कूड़ेदान और माँ का फर्क,
इस दुनिया ने मुझे समझाया है..
तेरे पुत्र त्याग की विवशता का,
कुछ तो आभास कराया है…
पर माँ मैं तो तब निश्छल था..
फिर क्यूँ माँ बचपन का मेरे,
तूने आखिर संहार किया,
वो प्रेम समर्पण तेरा था,
फिर मेरा क्यों व्यापार किया..
मैं विकल विवश सा बैठा हूँ,
लेकर तेरा अनाम उपहार..
माँ तेरी महिमा से कैसे कर सकता इंकार……
माँ अब मैं बड़ा हो चुका हूँ…
शायद सूर्यपुत्र के सूतपुत्र होने का,
आधार चाहता हूँ…
माँ मैं कर्ण का वंशज,
अपना अधिकार चाहता हूँ..
हे माँ मुझको सूर्यपुत्र होने का,
अब दे दो अधिकार,
या एक बार फिर सूतपुत्र से,
कवच और कुंडल का,
कर लो व्यापार..
फिर भी तेरी महिमा की गाथा,
ये जग गाएगा बार बार..
माँ तेरी महिमा से कैसे कर सकता इंकार……
माँ तेरी महिमा से कैसे कर सकता इंकार……