सपनो के शहर में क्या पाओगे ?
यहाँ अपने भी बेगानें हैं।
कुछ दूर तो बस्ती जंगल है,
फिर दूर तलक वीरानें हैं॥
कुछ दूर तो बस्ती जंगल है,
फिर दूर तलक वीरानें हैं॥
एक चिराग को बुझते देखा तो,
सोचा कुछ दीप जलानें है।
यहाँ दीप जलाता कोई नहीं,
सब शम्मा के परवानें हैं।।
सोचा कुछ दीप जलानें है।
यहाँ दीप जलाता कोई नहीं,
सब शम्मा के परवानें हैं।।
कुछ दूर चला इसमे तो पाया,
इस शहर के क्या अफसानें है।
यह याद दिलाता है अक्सर,
कुछ जख्म जो बहुत पुरानें हैं।।
इस शहर के क्या अफसानें है।
यह याद दिलाता है अक्सर,
कुछ जख्म जो बहुत पुरानें हैं।।
चलते ही जाना होगा मुझे,
आगे कुछ लोग भी आनें हैं।
शायद उनसे मिलके ही मुझे,
शायद उनसे मिलके ही मुझे,
लिखने कुछ नये तरानें हैं।।
कुछ लोग मुझे ये कहते हैं,
यहाँ लोग सभी दीवाने हैं।
कल उसे याद कर रोएंगे,
कल उसे याद कर रोएंगे,
जो मंजर आज सुहानें हैं।।
फिर भी यह सोच कर चलता हूँ,
मै पाऊंगा उस मंजिल को।
जिस जगह पे खुशियाँ मिलती हैं,
जहाँ सपने सभी सुहानें हैं।।
मै पाऊंगा उस मंजिल को।
जिस जगह पे खुशियाँ मिलती हैं,
जहाँ सपने सभी सुहानें हैं।।