गुरुवार, 23 सितंबर 2010


“मेरी जिन्दगी”

मेरी जिन्दगी बादल के इक टुकडे की तरह,
कभी यहाँ कभी वहाँ |
न कोई घर,न कोई ठिकाना,
न कोई अपना,न कोई बेगाना!
कभी गरजने की चाह ,कभी बरसने का विश्वास,
कभी सूरज से कभी समंदर से,सबसे से है अपना रिश्ता निभाना|

इक पल लगता है,समस्त आसमान पर है…
अपना विस्तृत साम्राज्य,दूसरे पल बूंद बन कर बरस पड़ता हूँ,

फिर मुझको लगता है, अपना अस्तित्व भी बेगाना!
मैने देखा है सूरज की उन किरनों को भी ,
जिसके तेज से है,मनुष्य अब तक अनजाना!
फिर बूंद बन कर गुजरा हूँ,उन गलियों से उन पगडंडीयों से
जहा होता है बचपन सयाना !

मैं गुजरा हूँ उन आंधियो से भी,
जिसके आगे बडे बडे वृक्षों को पड़ता है,
झुक जाना……
और उस पहाड़ पर भी बनाता हूँ ठिकाना,
जो तोड़ता है इन आंधियो के अंहकार को,
जहाँ इन आंधियो को पड़ता है रुक जाना|
इन सब के बाद मेरे नियति मे लिखा है,
कुछ और भी,
मेरे बूंद रूपी अस्तित्व को सागर मे होता है,
मिल जाना…
फिर भी यह सोचता हूँ कि,
ठहरी हुई जिंदगी के लिये क्या पछताना!
अभी मुझे और आगे है जाना…
समंदर के बाद आसमान है अगला ठिकाना …..
समंदर के बाद आसमान है अगला ठिकाना …..

बुधवार, 22 सितंबर 2010

एहसास



जब दर्द का ही एहसास नहीं……
तो अश्रु को व्यर्थ निमंत्रण क्यों?

जब मन मे किसी के प्यार नहीं….
तो आँखों का मूक निमंत्रण क्यों??

जब हृदय का जुडा न तार कोई….
तो तन का ब्यर्थ समर्पण क्यों?

जब रिश्तो मे विश्वास नहीं….
तो शब्दों का आडम्बर क्यों?

जब सूरज मे ही आग नहीं….
तो चन्दा से अग्नि का तर्पण क्यों?

जब सभी के चेहरे विकृत है….
तो रिश्तो का झूठा दर्पण क्यों?

जब मरकर सबको शांति मिले….
तो जीवन से आकर्षण क्यों???

जब दर्द का ही एहसास नहीं……
तो अश्रु को व्यर्थ निमंत्रण क्यों?




"आशुतोष नाथ तिवारी"

सोमवार, 20 सितंबर 2010

वनवास


इक निःशब्द उच्छवाश
करता है ये एहसास …..
जैसे सभी के बीच रहते हुए,
किसी ने ले लिया है वनवास|

जैसे पिंजडे मे बंद पंछी..
फडफडाता है अपने पंखो को,
यह सोच कर..
की उडने को खाली पड़ा है,
विस्तृत आकाश|


इक निःशब्द उच्छवाश|



"आशुतोष नाथ तिवारी"

ठिठुरता बचपन



जाडे की सुनसान रात,हड्डियाँ गलाने वाली ठंढ
बर्फ सी वो सिहरन,
रात के सन्नाटे को चीरती हुए ट्रकों की आवाजे……..
इन सबके बीच मैने देखा एक छोटी सी लड़की.
अधफटे कपडे.चिथडो मे लिपटी…
कांपती ठिठुरती,अपने आप मे सिमटती,
वो छोटी से लड़की,सिसकती सिहरती|

फिर मैने देखा अपनी तरफ,
गरम कपडे ऊनी चद्दर,
सिर मे टोपी,पाव मे जूते.
अगर बाहर आया भी तो..
सिर्फ एक कप काफी के लिए|
मैने सोचा ये अंतर क्यों है?
पूरी रात यही सोचता रहा|
सुबह मैने कुछ भीड़ इक्कठा देखी,
कुछ लोग इकठ्ठा थे किसी को घेरे हुए.
मैं भी गया देखकर आंखे फटी रह गई..
यही थी वो लड़की ठीठुरती सिहरती…
मगर अब नहीं थी, वो सिहरन,न ही थी वो ठिठुरन,
क्योंकि वह दूर जा चुकी थी,बहुत दूर दुनिया से परे|
पास पडे थे कुछ अधजले टायर के टुकडे|
लोगो ने फेक रखे थे कुछ सिक्के उसे जलाने के लिये..
मैने भी एक सिक्का उछाला उसकी लाश पे,
और कहा……
इससे ला दो कुछ कपडे.इसकी छोटी बहन के लिये..
कल ऐसा न हो हमे इकठ्ठा करने पडे कुछ सिक्के,
उसके भी कफ़न के लिये……………..




..

"आशुतोष नाथ तिवारी"

शनिवार, 18 सितंबर 2010

राम मंदिर और कश्मीर





राम मंदिर:
पिछले कुछ दिनों से खबरिया चैनलों मे राम मंदिर का मुद्दा छाया हुआ है..कुछ अदालत अदालत की रट लगाये है तो कुछ लोग समझौता करने के लिये लगे हुए हैं..
एक सामान्य हिन्दू होने के कारण जो स्वाभाविक सी प्रतिक्रिया मेरी है की मंदिर वही बनना चाहिये.. राम हिन्दू आस्था के प्रतीक हैं...ठीक वैसे ही जैसे की मुह्हमद साहब मुस्लिम आस्था के...अब अगर मै यह सवाल उठाऊ की
मक्का मे मंदिर बनवानी चाहिये तो ये ब्यर्थ प्रलाप से ज्यादा कुछ नहीं....ठीक उसी तरह अयोध्या में बाबरी मस्जिद का औचित्य भी तो ब्यर्थ प्रलाप ही है...
अगर आज आप के घर मे कोई आ कर बाहुबल से आप की व्यवस्था को बदल देता है, तो क्या हम प्रतिरोध नहीं करते हैं... बाबर ने हमारे हिन्दुस्थान मे बाहुबल से अधिकार किया था...अपने बाहुबल से मंदिरों को तोड़ मस्जिद का रूप दे दिया ... तो क्या अब प्रतिरोध भी न करें ..........
मुझे या एक हिन्दू को किसी मस्जिद या चर्च से कोई प्रतिरोध नहीं है लकिन हमारे मंदिर की कीमत पर हमारे आस्था की कीमत पर स्वीकार नहीं..




.
आज की तथाकथित सेकुलर मीडिया और तुस्टीकरण करने के लिये लालायित, कुछ लाल किले के दलाल,जो दुर्भाग्यवश संसद में पहुच गयें हैं, हर भगवा पहनने वाले को हिन्दू आतंकवादी का नाम दे देतें है... अगर राम का नाम लेना आतंकवाद है तो हम आतंकवादी है ...अगर हिन्दुस्थान मे हिन्दू होना आतंकवाद है तो ८५% लोग आतंकवादी है..
सेकुलर वो लोग है जो कश्मीर मे कत्ले आम कर रहें है..सेकुलर वो है जिन्होने कश्मीरी पंडितो को अपने ही देश मे भटकने के लिये मजबूर कर रखा है...सेकुलर वो भी है जो वोट बैंक के लिये कार सेवकों पर गोली चलवाते है...इन सबके बाद हिन्दू प्रतिरोध को आतंकवाद और अतिवाद का नाम दिया जाता है...
हमने कश्मीर मे हिन्दुस्थान का झंडा जलाने वालों के लिये special development package बना रखा है... और भगवा पहनने वाली साध्वी के लिये special torture जेल.....
अंत मे बस दो पंक्तिया कहनी ही काफी है हिन्दू जनमानस की भावनाओं के लिये...


अतिशय रगड़ करे जो कोई
अनल प्रकट चन्दन से होई.....

चलिये हम सब राम मंदिर के निर्माण के लिये सात्विक और आहिंसक तरीके से अपना हरसंभव योगदान दें...

जय श्री राम
जय हिन्दुस्थान ..


"आशुतोष नाथ तिवारी"

अपना ख्याल रखना..

एक रिश्ता किसी की जिन्दगी से तो बड़ा नहीं हो सकता..
तुम्हारे साथ बिताये खुबसूरत पल हमेशा याद रहेंगे..
वादा करो की अब सिगरेट नहीं पियोगे
दवा की डिबिया तुम्हारी आलमारी के ऊपर रक्खी है..
समय पर दवाई लेते रहना..
वो सफ़ेद शर्ट की पाकेट पर इंक लगे कपड़े बदल देना..
कुछ दिनों बाद सब ठीक हो जाएगा..

वैसे भी दुनिया आज कल बहुत छोटी हो गयी है..
मोबाइल इन्टरनेट ईमेल ब्लॉग...
टच मे तो रहेंगे ही हम....
शायद कभी वक़्त ने चाहा,
तो घडी की सुई उलटी घूमे....
हमारी फिर कही मुलाकात हो..
हम फिर अजनबी हो जाएँ..
तब सब ठीक हो जाएगा..
ये जाते वक़्त रोना ठीक नहीं होता है..
अपना ख्याल रखना..
हो सके तो तब तक के लिये,
मुझे भूल जाना...
अपना ख्याल रखना.......



"आशुतोष नाथ तिवारी"

मैं भीष्म हूँ


मैं भीष्म हूँ
त्याग की प्रतिमूर्ति,
प्रतिज्ञा का पर्याय,

शर शैया पर पड़ा हूँ,
बाणों से बिंधा हुआ,
उस युग मे भी..
इस युग मे भी..
ये सारे शर,मेरे प्रिय के हैं,
प्रिय पुत्र अर्जुन के...


जिनका संधान सिखा था उसने,
अनवरत मेरी साधना से,
गुरु द्रोण की तपस्या से..

लेकिन कही नहीं था शामिल,
मेरे साधना में..या द्रोण की तपस्या में,
धर्म की रक्षा के लिये,
अधर्म को अपनाना
भीष्म को जितने के लिये
शिखंडी को कवच बनाना

लेकिन ये उपाय भी तो मैने ही बताया है..
धर्म की रक्षा के लिये,
इच्छा मृत्यु का वरदान गंगा से,
मैने ही तो पाया है.....

वो एक महाभारत था,
हर युग मे महाभारत होगा,
मगर,
मै भीष्म डर रहा हू आज,
सूर्य के उतरायण होने से..
मुझे मृत्यु का किंचित भय नहीं है...
मगर,
सूर्य उतरायण हुआ तो,
अब शिखंडियो की फ़ौज से कौन टकराएगा,
अगर मैने ये शारीर छोड़ दिया तो,
अर्जुन को विजय कौन दिलाएगा..
क्या इस युग मै भी
कोई गंगा से इच्छा मृत्यु का वरदान पायेगा???
मैं भीष्म हूँ...........



."आशुतोष नाथ तिवारी"