गुरुवार, 26 मई 2011

ख्वाहिश


                
अभी कुछ और करना है, इरादे रोज करता हूँ..
इसी ख्वाहिश में  जीता हूँ इसी ख्वाहिश में मरता हूँ |

सितारों की चमक में खो गयी है चंद तस्वीरे..
इन्ही धुंधले  हुए ख्वाबो में, अब भी रंग भरता हूँ |

मेरे ख्वाबो की तन्हाई, तुम्हे मेरे पास ले आई..
मै अपने दिल से जीता हूँमै तेरे मन का दिखता हूँ |

तेरे हालत को समझूँ  या खुद के दिल को समझाऊं..
तेरे मुझको न खोने की, इसी ख्वाहिश से डरता हूँ|

जवाजे-इश्क की कतरन को ले कर अभी बैठा हूँ..
ये कैसी हर्फे-गुरबत है, मै तेरा नाम लिखता हूँ |

ये कश्ती डूब भी जाए,  मै मंजिल पा ही जाऊंगा..
मेरा हासिल ही तूफा है,मै खुद की राह चुनता हूँ |

अभी कुछ और करना है, इरादे रोज करता हूँ..
इसी ख्वाहिश में जीता हूँ,इसी ख्वाहिश मे मरता हूँ |


जवाजे-इश्क   : justification of love 
 हर्फे-गुरबत: poverty of words 

25 टिप्‍पणियां:

  1. ये कश्ती डूब भी जाए, मै मंजिल पा ही जाऊंगा..
    मेरा हासिल ही तूफा है,मै खुद की राह चुनता हूँ |

    बहुत सुन्दर गज़ल..हरेक शेर एक सुन्दर ख्वाब..

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  2. अभी कुछ और करना है, इरादे रोज करता हूँ..
    इसी ख्वाहिश में जीता हूँ,इसी ख्वाहिश मे मरता हूँ |

    बहुत खूब....

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  3. आपकी कोशिश को यक़ीनन एक अच्छी कोशिश कहा जाएगा।
    उर्दू के भारी-भरकम अल्फ़ाज़ का इस्तेमाल भी आपने सही किया है।
    शुरूआत में इतना बहुत है। वक्त गुज़रेगा तो पूर्णता और दक्षता सब कुछ आ जाएगी।

    http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/05/dr-anwer-jamal.html

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  4. /सितारों की चमक में खो गयी है चंद तस्वीरे..
    इन्ही धुंधले हुए ख्वाबो में, अब भी रंग भरता हूँ |/
    खूबसूरत ख़याल. दाद कबूल करें.

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  5. ये कश्ती डूब भी जाए, मै मंजिल पा ही जाऊंगा..
    मेरा हासिल ही तूफा है,मै खुद की राह चुनता हूँ |
    prerak bhavabhivyakti.badhai.

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  6. अभी कुछ और करना है, इरादे रोज करता हूँ..
    इसी ख्वाहिश में जीता हूँ इसी ख्वाहिश में मरता हूँ ..

    Excellent !

    .

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  7. बहुत खूब लिखा है आशुतोष भाई.

    ये कश्ती डूब भी जाए, मै मंजिल पा ही जाऊंगा..
    मेरा हासिल ही तूफा है,मैं लहरों पे ही चलता हूँ

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  8. ये कश्ती डूब भी जाए, मै मंजिल पा ही जाऊंगा..
    मेरा हासिल ही तूफा है,मै खुद की राह चुनता हूँ |

    अभी कुछ और करना है, इरादे रोज करता हूँ..
    इसी ख्वाहिश में जीता हूँ,इसी ख्वाहिश मे मरता हूँ |

    बेहतरीन शब्द सामर्थ्य युक्त इस रचना के लिए आभार !!
    हम होंगे कामयाब एक दिन मन में है विश्वास पूरा है विश्वास हम होंगे कामयाब एक दिन!!

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  9. देखकर बाधा विवध, बहु विघ्‍न घबराते नहीं। 'कर्मवीर' मनुष्‍य की यही पहचान है।

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  10. बहुत बढ़िया लगा पढ़कर....


    अभी कुछ और करना है, इरादे रोज करता हूँ..
    इसी ख्वाहिश में जीता हूँ,इसी ख्वाहिश मे मरता हूँ |

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  11. बहुत सुन्दर गज़ल..हरेक शेर एक सुन्दर ख्वाब..

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  12. आपकी ख्‍वाहिशों को सलाम
    आमीन

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  13. बहुत ठीक कहा है आपने, ख्वाहिश

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  14. बेहतरीन शब्द सामर्थ्य युक्त इस रचना के लिए आभार|

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  15. अभी कुछ और करना है इरादे रोज़ करता हूँ ,
    तेरे ख्वाबो मेन जीता हूँ तेरे ख़्वाबों में मरता हूँ .बहुत सुन्दर प्रस्तुति .

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  16. लाजवाब ग़ज़ल, उर्दू पर भी अच्छी पकड़ तथा उन्हें सम्प्रेश्नीय बनाने की क्षमता तो वाकई सराहनीय है. प्रत्येक शेर का अपना अंदाज़ निराला है. बधाई..

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  17. ये अनवर जमाल यहाँ कहाँ से आ गया मरदूद ! लाहौल विला कुवत ! खुद तो शायरी जानता नहीं और सलाह देता है
    बहुत बढिया शायरी है भाईजान ! इसके चक्कर में मत पढ़ना खुद तो डूबेगा ही साथ में आप को भी ले डूबेगा !

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  18. अभी कुछ और करना है, इरादे रोज करता हूँ..
    इसी ख्वाहिश में जीता हूँ,इसी ख्वाहिश मे मरता हूँ |
    खुबसूरत शेर दाद को मोहताज नहीं फिर भी दिल ने कहा वाह वाह

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  19. वन्दे मातरम आशुतोष जी,
    बहुत सुन्दर गज़ल..हरेक शेर लाजवाब सुन्दर

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  20. प्रिय आशुतोष जी खूब बनी -गुल खिलते रहिये शुभ कामनाएं बढ़ते रहिये
    भ्रमर ५

    अभी कुछ और करना है, इरादे रोज करता हूँ..
    इसी ख्वाहिश में जीता हूँ,इसी ख्वाहिश मे मरता हूँ |

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ये कृति कैसी लगी आप अपने बहुमूल्य विचार यहाँ लिखें ..