शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

सत्य से साक्षात्कार

आज अचानक हो गया सत्य से सामना,
करना पड़ा मुझे सत्य से साक्षात्कार,
कटु ही सही,
पर सत्य तो सत्य है.
आज भी है,कल भी था.
कल भी रहेगा …..
स्वीकार करना पड़ा उस सत्य को.
जिसकी सत्यता को,
अब तक करता रहा था अस्वीकार|
आज करना पड़ा मुझे सत्य से साक्षात्कार|

संवेदनाओ और भावनाओ के सूर्य को,
अंहकार और तृष्णा का राहु ,
बना रहा है,
प्रतिक्षण,
अपना आहार|
आज करना पड़ा करना पड़ा मुझे,
सत्य से साक्षात्कार|

सत्य तो ये है,
ब्यर्थ है ये रिश्ते..
ब्यर्थ है ये एहसास
ब्यर्थ है इनका प्यार,
आज करना पड़ा करना पड़ा,
मुझे सत्य से साक्षात्कार!

निज स्वार्थ की चाह में,
मैं और अहम् की राह में,
अहंकारी सोच ने,
कर दिया है,
इन रिश्तो का,
इन अहसासों का,
संहार!
आज करना पड़ा,
मुझे सत्य से साक्षात्कार.....

17 टिप्‍पणियां:

  1. विकल भावनाओं एवं यथार्थ की .....सार्थक और सुन्दर प्रस्तुति

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  2. बिलकुल सही फरमाया , सत्य का सामना सब को करना पड़ता है |
    हम जानते है कि ये सच है परन्तु विडम्बना देखिये कि मोह नहीं छूटता है

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  3. संवेदनाओ और भावनाओ के सूर्य को,
    अंहकार और तृष्णा का राहु ,
    बना रहा है,
    प्रतिक्षण,
    अपना आहार|
    आज करना पड़ा करना पड़ा मुझे,
    सत्य से साक्षात्कार|

    बहुत सुन्दर आत्म मंथन.अति संवेदनशील.

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  4. कृपया निराशा की बातें न करे!
    हाँ ये आपने बिलकुल सत्य कहा..
    सत्य तो सत्य है.
    आज भी है,कल भी था.
    कल भी रहेगा …..
    स्वीकार करना पड़ा उस सत्य को.
    जिसकी सत्यता को,
    अब तक करता रहा था अस्वीकार|
    किन्तु ये भी सत्य है की यदि आपके विचार सकारात्मक तथा स्वार्थ रहित हैं तो
    सभी रिश्ते व्यर्थ के नहीं लगेंगे चाहे वो पारिवारिक रिश्ता हो या सामाजिक रिश्ता हो!
    आपको मेरी हार्दिक सुभकामनाएँ !!

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  5. बैशाखी की हार्दिक शुभ कामनाएं

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  6. अच्‍छी भावनाओं के साथ सुंदर रचना।

    शुभकामनाएं आपको।

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  7. khubsurat... aur kuch kah skun is layak main abhi khud ko nahi samajhta...

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  8. संवेदनाओ और भावनाओ के सूर्य को,
    अंहकार और तृष्णा का राहु ,
    बना रहा है,
    प्रतिक्षण,
    अपना आहार|
    आज करना पड़ा करना पड़ा मुझे,
    सत्य से साक्षात्कार|

    बहुत सुंदर रचना.....बधा्ई

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  9. आशुतोष जी बहुत सुन्दर लिखा है आप ने और और मुझे बहुत अच्छा लगा की आप मेरे ब्लॉग पर आये

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  10. आप सभी का बहुत बहुत आभार कविता पर समय देने के लिए एवं भावना को समझने का लिए..
    मदन जी आप का आभार ..मार्गदर्शन मिलता रहेगा तो निराशा का सवाल ही नहीं है..

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  11. निज स्वार्थ की चाह में,
    मैं और अहम् की राह में,
    अहंकारी सोच ने,
    कर दिया है,
    इन रिश्तो का,
    इन अहसासों का,
    संहार!
    आज करना पड़ा,
    मुझे सत्य से साक्षात्कार...

    रिश्तों में दूरियों को बढाने में सबसे बड़ा हाथ अहंकार का ही होता है , जो रिश्तों को बनने से पहले ही खत्म कर डालते हैं और आप इस सच्चाई को जान गये ये बहुत बड़ी बात है | क्युकी जब अपने स्वार्थ की बात आती है तो अहसास अपने आप खत्म होने लगते हैं | और बिना अहसास के जीवन कुछ भी नहीं |
    सुन्दर रचना |

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  12. बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ. सुन्दर रचना.

    दुनाली पर देखें
    चलने की ख्वाहिश...

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  13. great bhaiya....

    plzz follow my blog...

    http://ashu4ever4u.blogspot.com/

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ये कृति कैसी लगी आप अपने बहुमूल्य विचार यहाँ लिखें ..