रविवार, 27 जनवरी 2013

मरुस्थल

मन क्यों विह्वल है आज फिर?
यादों  के उस मरुस्थल  में,
यादें जो छोड़  चली थी ,
सपनो के उस कठिन भंवर  में….

मन क्यों ढूढ रहा है?
रेत के आँशियाने   को,
इन फूलों  की  महक में..
 इन हवाओं की हलचल में..

मन क्यों विह्वल है आज फिर?
यादों के उस मरुस्थल में,
क्यों ये सोचता है?
कर देगा सबका उद्धार.
कर लेगा आत्मसाक्षात्कार..
भर देगा प्यार
सबके अन्तःस्थल में

मन क्यों विह्वल है आज फिर?
 यादों के उस मरुस्थल में……….


2 टिप्‍पणियां:

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