गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

प्राची की तलाश...


           ये कविता गुरुदेव दीपक बाबा और  उनकी काल्पनिक नायिका 
                                      प्राची  के चरणों में समर्पित है.. 
                                                


मन क्यों उदास है??
शायद इसे किसी की तलाश है!
ये जानता है वो है इससे बहुत दूर,
फिर भी ढूंढता  उसे अपने आस पास है|
मन क्यों उदास है???

                   
शायद ये तलाश मे है उस परछाई के….
                    
जिसे इसके आस्तित्व पर ही अविश्वाश है|
                   
शायद इसे अपनी मुट्ठी मे ,
                   
सूखी रेत को बंद करने की आस है|
                   
मन क्यों उदास है????
वो कही नहीं है,
इसे इसका एहसास है.
फिर भी वो मिलेगा इसे,
इसे इसका विश्वास है|
मन क्यों उदास है???






12 टिप्‍पणियां:

  1. आशु भाई - एक फिल्म थी श्याद ६० के दशक की - नवरंग - श्याम-श्वेत - नायक महिपाल(?) देख लेना कभी मौका मिले तो.

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  2. प्राची (नायिका) का जवाब मिल जाएगा.

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  3. शायद इसे अपनी मुट्ठी मे ,
    सूखी रेत को बंद करने की आस है|
    मन क्यों उदास है ...

    रेत को मुट्ठी में बंद करने की ख्वाहिश उदासी ही दे जाती है अक्सर ...
    बहुत खूब लिखा है ...
    आपको नए साल की मुबारकबाद ...

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  4. Baba ki Prachi Baba ke ghar main hai....


    ham sab sanjte hai....

    jai baba banaras..............

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  5. हुम ...मन की उदासी का कोई निवारण नहीं. तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना.

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  6. मन का क्‍या ये तो चंचल होता है.......
    सुंदर अहसास।
    गहरे भाव.....

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  7. बहुत सुंदर प्रस्तुती बेहतरीन रचना,.....
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाए..

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  8. मन ने बहुत नचाया सबको, दिल ने बहुत सताया है.
    ढूंढ -ढूंढ के हुए दीवाने ,किन्तु नहीं अब तक पाया है.
    ढूँढा जब उसे अपने अन्दर, मन मंदिर में बैठा पाया है.
    प्राची हो सकती विलग कैसे? खोजो उसे जहां गवांया है.

    सुंदर गहरे बेहतरीन भाव.....
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाए..

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  9. सहज सरल अभिव्यक्ति दिल से .नव वर्ष मुबारक .

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ये कृति कैसी लगी आप अपने बहुमूल्य विचार यहाँ लिखें ..