रविवार, 19 दिसंबर 2010

माँ से कुछ सवाल-एक अनाथ के

काफी दिनों से इस विषय पर कुछ लिखने को सोच रहा था..
हालाँकि माँ से सवाल शायद निकृष्टता की श्रेणी का कृत्य हो सकता है..मगर उस पीड़ा का क्या जो महाभारत काल से चली आ रही है..कभी कर्ण के रूप मे कभी आज के अनाथालयों मे पलते बच्चों के रूप में………
विषय पर लिखना कठिन था क्यूंकि ये किसी प्रेमी या प्रेमिका के ह्रदय की विरह वेदना नहीं है जो शब्दों में उकेर दी जाए.. विषयवस्तु की ये पीड़ा तो अनंत कल से चली आ रही जिसकी अनुभूति हर गुजरते हुए दिन के साथ कटु और असह्य हो जा रही है..दूसरी तरफ इस पीड़ा के चित्रण में माँ की निर्विवाद सत्ता के चरित्र चित्रण के साथ भी न्याय करना था.. मैने अपना प्रयास किया है…………
इस पीड़ा को समझने का… माँ की निर्विवाद सत्ता से प्रश्न करने का..

माँ से कुछ सवाल-एक अनाथ के

माँ तू विश्वजननी है
तेरी महिमा से कैसे कर सकता इंकार
किताबों में पढ़ा,लोगों से सुना
माँ की ममता,माँ का त्याग,माँ की पीड़ा
ये सब तो सत्य है माँ,शाश्वत सत्य
फिर हे माँ कैसे मैं करूँ
तुमसे कुछ प्रश्न,
जिनकी पीड़ा है,
असीमित अपार……
माँ तेरी महिमा से कैसे कर सकता इंकार……

माँ अभी मै बच्चा हूँ,
अक्सर जब ठंढ लगती है,
या कोई तेज आवाज कानों को डरा जाती है,
तब ढूंढ़ता हूँ तुझको,
अनाथालय की सीढियों पर..
कभी कभी उस कूड़ेदान में भी,
जिसे मेरे साथ का बच्चा कहता है..
वो कूड़ेदान तेरी माँ है, तू उसमें ही मिला था..
हर बार माँ मेरी खोज,
कूड़ेदान से टकराकर,
अनाथालय की सीढियों पर वापस आ जाती है..
फिर भी माँ तेरे ममतामयी स्पर्श की अतृप्त इच्छा में
रात रात भर उस कूड़ेदान मे छिप जाता हूँ..
उस नश्तर सी चुभती ठंढक में भी,
तेरा कोमल स्पर्श पाता हूँ..
तेरे स्पर्श की इस मृगमरीचिका में भी
पाता हूँ मैं सुख अपार
माँ तेरी महिमा से कैसे कर सकता इंकार……

माँ मैं अब बड़ा हो रहा हूँ……
कूड़ेदान और माँ का फर्क,
इस दुनिया ने मुझे समझाया है..
तेरे पुत्र त्याग की विवशता का,
कुछ तो आभास कराया है…
पर माँ मैं तो तब निश्छल था..
फिर क्यूँ माँ बचपन का मेरे,
तूने आखिर संहार किया,
वो प्रेम समर्पण तेरा था,
फिर मेरा क्यों व्यापार किया..
मैं विकल विवश सा बैठा हूँ,
लेकर तेरा अनाम उपहार..
माँ तेरी महिमा से कैसे कर सकता इंकार……
माँ अब मैं बड़ा हो चुका हूँ…
शायद सूर्यपुत्र के सूतपुत्र होने का,
आधार चाहता हूँ…
माँ मैं कर्ण का वंशज,
अपना अधिकार चाहता हूँ..
हे माँ मुझको सूर्यपुत्र होने का,
अब दे दो अधिकार,
या एक बार फिर सूतपुत्र से,
कवच और कुंडल का,
कर लो व्यापार..
फिर भी तेरी महिमा की गाथा,
ये जग गाएगा बार बार..
माँ तेरी महिमा से कैसे कर सकता इंकार……
माँ तेरी महिमा से कैसे कर सकता इंकार……


30 टिप्‍पणियां:

  1. Ye kavita alag hi rang liye hue hai. adwitiya prastuti ke liye badhaai sweekarein.

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  2. Ashu Bhai, kavitaen padhi, abhivyakti kafi marmik hai aapki. Nirantar likhte rhe to or bhi nikhar aata jayega. Bas ek anurodh karunga ki Dharm ke mudde par apni soch ko jara or vyapak tatha samvedanshil banaye.
    Shubhkamnaon ke sath,
    keshav

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  3. केशव जी धन्यवाद जो आप ने कविता की भावना को समझा..
    धर्म के मुद्दे पर में थोडा अतिवादी हो सकता हूँ..मगर इस सोच के पीछे कुछ कारन होंगे,जिनका जिक्र कभी बाद में आप से करूँगा..

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  4. बेहतरीन।
    शब्‍द नहीं सूझ रहे इस भावनात्‍मक रचना की तारीफ के लिए।
    'मां' क्‍या कहूं। इस एक रिश्‍ते को ही मैं महसूस नहीं कर सका, शायद इसीलिए...
    एक बार फिर बेहतरीन।
    आपकी लेखनी वैसे भी बहुत सुहाती है।
    अब इस रचना ने आपका फालोवर बना दिया।
    शुभकामनाएं आपको।

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  5. बेहतरीन कविता तिवारी जी, साधुवाद

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  6. bahut hi achi kavita hai... iski prashansa karne me main asmarth hoon...

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  7. बेहतरीन कविता तिवारी जी,

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  8. kavita apne maksad me kaamyab hai ...prem samarpan aur mera vyapaar ...vytha ko shabd mile hain..

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  9. bahut achhi kavita mujhe behad pasand aai..........kavita ke nayek ke saval apne maa ke prati sochniya hai.....

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  10. अंतर्मन को झकझोर देनेवाली कविता और दूसरों के दर्द में खुद को समाहित कर अहसास करने वाली कविता है ये. बहुत बहुत बधाई.

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  11. बहुत दिनों के बाद इतनी संवेदनशील कोई रचना पढ़ी है ! मन का कोना कोना द्रवित हो गया ! इतनी मौलिक और अनुपम प्रस्तुति के लिये हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें !

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  12. dosh na maa ka hai na bete ka hai... dosh to us 3rd grade society ka hai... jise aap indian culture kehte ho.... real indian culture belongs to ashtavakra,and shiva... ye bewkoofiya culture pata nahi kaise establish hua hai.. par jo bhi hai..isme maa ki galti to nahi hai, kyoki according to Ram, a child is responsibility of a community or society (not only of parents) and society has to give first class treatment to any child whether he is son of a king or beggar... "Maika" system by Ram is a classic example.. so, change your 3rd grade culture (present one which is a bingo combination of narrow mindedness and misunderstanding of hindu culture, and not original culture)...

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  13. @अतुल जी बहुत बहुत धन्यवाद..आप की भावनाओ के साथ मेरी संवेदना है..
    @किशन कुमार मिश्र जी,गुरुनाम जी,मनोज जी,डी.पी.मिश्र जी: आप सभी का आभार जो आप ने कृति पसंद की ..
    @शारदा अरोरा जी & सुमन जी;कविता के नायक की व्यथा कथा समझने के लिए आभार
    @ @शिव प्रकाश जी: धन्यवाद
    @साधना वैद्य जी: आप के ब्लॉग पर आयीं..और कविता की भावना को समझा उसके लिए आभार..आप का मार्गदर्शन अमूल्य है..
    @ sonu:Ok Mr. sonu this is your view and everyone has its own right to express his view..thanks for your view..i will try to discuss the same with you on personal email if possible

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  14. आशुतोष भाई, नमस्कार...देर से पढ़ रहा हूँ पर पढके महसूस यही हुआ कि दुनिया के सैकड़ों दर्दों में से यह अनाथ होने का दर्द और हक न मिलने का दर्द अपनी बानगी लिए हुए है..ये तो उसके ही दिल से पूछा जिसपे गुज़रती है..
    पर एक विचारशील रचनाधर्मी के नाते आपने जो झलकाने का उत्तम प्रयास किया वो सराहनीय है. आपके प्रोफाइल वास्तु पढके मुझे यही महसूस हुआ कि एक गहन संवेदनशील व्यक्ति से आज और संपर्क हुआ. लेखन का शौक़ और झुकाव मुझमें भी बहुत है, पर विडम्बनायें हर तरफ हैं..कुछ निजी कुछ लोक..इनसे उबरने के प्रयास में लगे हैं. p4poetry पर कुछ थोडा बहुत पोस्ट किया है. समय मिले तो देखिएगा..http://p4poetry.com/author/reetesh-sabr/

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  15. maa mujhe teri anchal me palna hai
    tham ki anguli tere sath chalana hai
    puja ka meri bardan hai maa
    mere liye tu bhagwan hai
    har mandir har murat me ,
    bas tera rup samahai

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  16. पाली राज जी,अख्तर खान जी बहुत बहुत धन्यवाद्,
    सब्र जबलपुरी जी आप ने इतना समय निकला आभार आप का..
    @कविता जी ,जगदम्बा ठाकुर जी..बहुत बहुत धन्यवाद् ब्लॉग पर आने के लिए..

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  17. Jab tak Aap Jaise Sapoot Hindi Ki Sewa Karte Rahenge Hindi Sahitya Ki Aabha Tanik Si Bhi Malin Nahin Ho Sakti, Kafi Katu Swabhaw Ka Pathak Hone Ke Pashaat Bhi Meri Shabd aapke Prasansa Ko Hi aane Ko uttawle Hain...
    Sundar, Marmik.... Adbhut.... Thanks A Tone For Inivite me to visit a new rising sun of Indian Litrature.... Thank You Very Much....

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  18. बहुत अच्छा लगा आपका अनुसरण करना..
    मैं आश्वस्त हूँ आपकी नवीन रचनाओ से जरुर एक दिन गर्तों में छुपी क्रांति, संसद में पसरी अशांति,
    और भारत माँ की मलिन होती कांती के लिए काला खून (स्याही) बहाकर नए युग के नए महाभारत का सप्त अध्याय शीर्षक देगा, और उस रचना की शीर्षक ही काफी होगी भारत को विश्वजयी बनाने के लिए... हमारी मत मिलती जुलती है.... भले मैं भी लिखता हूँ कुछ कुछ लेकिन शांति नहीं मिलती अपनी ही दुर्गति अपने हाथों देखकर... हाँ आपको थोड़ी सी अटपटी लगेगी मैं इंग्लिश का नन्हा उपन्यासकार होते हुए भी हिंदी की चर्चा कर रहा हूँ, सत्य यह है की मैं मेडिकल छोड़कर दिल्ली यूनिवर्सिटी से हिंदी स्नातक कर रहा हूँ, आपको अजीब लगेगी मेरी पहली पुस्तक एक हिंदी कविता संग्रह ही थी... प्रिया... जो सिर्फ बिहार में थोड़ी मोदी सी चली.. और जब मैंने इंग्लिश नोवेल लिखी थी बहुत लोगों के हाथ सामने आये.. अगले हफ्ते तक किताब बाज़ार में होगी... वही कहानी हिंदी में थी तो बड़े अपमान के साथ प्रकाशक अपने केबिन के बाहर बिठाते थे और जब इंग्लिश में लिखी तो वही प्रकाशक वर्ग मुझपे लाखों रुपैये लगाने को तैयार हो गए... वही कहानी जो हिंदी में उज्जवलित थी सबने कहा लेखक बनाना आसान है और थोडा सा निकम्मापन भी, वही कहानी जब अंग्रेजी shabdo में है, मैं जानता हूँ बहुत ही घटिया लिखी है मैंने इंग्लिश में फिर भी.. लोगों में उत्स्तुकता है मेरे बारे में जानने की... मेरे नोवेल DWELLING DEW के bare में padhne की.. आखिर क्यूँ मेरे भाई... हमारी मान हिंदी से ज्यादा प्यार हमारी सौतेली मान अंग्रेजी क्यूँ इतनी प्यारी हो गयी है कारन शोहरत और पैसा, माफ़ी चाहूँगा मेरी भी थी, इसीलिए सौतेली माँ का आँचल जरुर पकड़ा लेकिन स्तनपान के लिए अपनी ही माँ के पास दौड़ता हूँ... वाकई में अजीब है ज़िन्दगी... इस दौर में apke abhiwyakti par naman karne से khudko rok नहीं saka...

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  19. आशुतोष जी आपकी पोस्ट ने दिल गहराईयों को छु लिया ...
    आपने बहुत ही गहरा दर्द व्यक्त किया ..आपको बहुत बहुत धन्यवाद....

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  20. आशुतोष जी आप ब्लॉग पर आए और अपनी बहुमूल्य राय भी दी कुछ हद तक आप सहमत भी नहीं हैं...
    आपने जिन भावों में अपनी रचना को ढाला है वो कहीं हद तक मेरे भी भाव हो सकते हैं। आज समाज की जो दशा है वो सभी जानते हैं एक तरफ बच्चे हैं जो मां-पिता का ख्याल नहीं रखते और माता-पिता अपमानित होकर जीते हैं...हर दूसरे-तीसरे परिवार में शायद यह उदाहरण मिल जाए...जबकि हर दूसरे-तीसरे परिवार का बच्चा यह प्रश्न नहीं पूछ सकता...मां तो ममता की मूरत होती है...जिस हाल में रहे बच्चे को पहले खिलाती है। लेकिन यह समाज है यहां वो नारी भी हैं जो नारी कहलाने के लायक ही नहीं हैं जिनके कृत्य पर एक मासूम का जीवन बर्बाद हो जाता है पर उनके इस कृत्य से क्या मां की ममता कम हो जाएगी....नहीं न....हमने भी मां का प्यार देखा है....उसी साए में बड़े हुए हैं....हां, हर उस नारी-पुरुष की मैं विरोधी हूं जिनके कारण बच्चे यतीम हो जाते हैं और जिन बच्चों की जगह मां की गोद होनी चाहिए वो कूड़े के ढेर पर मिलते हैं...
    यह तो दर्द भरी दास्तां है..
    बहुत मार्मिक...

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  21. की तेरी सपरास्ती पर गुमान है हमको,
    इस खूनी दौर-इ-जहां में खुशियों भरा
    आसमा है हमको!
    यूँ तो कई माँइने है तेरे इस बेदर्द जहां में,
    लेकिन! तू इक फराक दिल मेंहरबा है हमको!
    यूँ तो मयखाने में तू साकी है रिंद की,
    जहाँ की जिल्लतों से तेरा दामन पुर सुकूँ सायबा है हमको...!!!!!!!!!

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  22. आशोतोष जी कविता के द्वारा जो प्रश्न उठाए गए हैं वो बहुत ही क्रूर सत्य है। और इसके लिए निरुत्तर हूं।
    हालाकि यह एक कमज़ोर तर्क ही होगा इस प्रश्न के परिप्रेक्ष्य में, पर फिर भी ...
    ‘माता कुमाता न भवति..!’

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  23. apne such dard ko shabdo me utar diya hai... kya kahu mujhe ab shabd nhi mil rahe hai... bhut hi bhaavpur abhivakti hai....

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  24. बहुत सुन्दर शब्दों में उकेरा है एक अनाथ की भावनाको| धन्यवाद|

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  25. बहुत भावपूर्ण ....... ममता का अलग रंग समेटे रचना ....... उत्कृष्ट कविता

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  26. आशुतोष भाई जी माँ और अनाथ के वेदना और वस्तुगत स्थिति भाव से भरी ये रचना - हर्ष हुआ

    आशुतोष जी आप की कविता माँ मैं अब बड़ा हो रहा हूँ… बहुत प्यारी है और बहुत ही समृद्ध है बधाई हो

    धन्यवाद

    शुक्ल भ्रमर ५

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