शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

वो पेड़ आज भी अकेला खड़ा है.



एहसासों की चादर मे लिपटे हुए
वक़्त की धूप मे अलसाये हुए ख्वाब
अब अंगड़ाई लेने लगे है ........

शायद उस बंजर जमीन में
जो तुमने बीज बोया था
आँसूओं की नमी से..
उस बीज मे अंकुर निकल रहा है..
कुछ बरस बाद ये बीज पेड़ बन जाएंगे..

ये ख्वाब एहसासों की चादर हटायेंगे
कुछ ख्वाब टूटेंगे, कुछ सच हो जाएंगे....
जो मंजिल हमने साथ देखी थी,
वहां पहुचने पर मेरे ख्वाब मुझे..
एकाकी पाएंगे...........

कुछ पथिक पेड़ के नीचे ठहरेंगे बातें करेंगे,
फिर अपनी मंजिल की ओर बढ़ जाएंगे..
हर घंटे दिन बरस .......
पेड़ को अकेला खड़ा पायेंगे......

वो पेड़ आज भी अकेला खड़ा है..
उस मंजिल पर,जो हमने साथ देखी थी...
सब कुछ तो है..
पर तुम्हारे न होने का एहसास
इस मंजिल पर, इस पेड़ के नीचे...
टूटे पत्तों की तरह,बिखरा पड़ा है.......
वो पेड़ आज भी अकेला खड़ा है..
वो पेड़ आज भी अकेला खड़ा है..


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18 टिप्‍पणियां:

  1. अतिसुन्दर.
    पर तुम्हारे न होने का एहसास
    इस मंजिल पर, इस पेड़ के नीचे...
    टूटे पत्तों की तरह,बिखरा पड़ा है.......
    वो पेड़ आज भी अकेला खड़ा है..
    वो पेड़ आज भी अकेला खड़ा है..

    आपकी कलम को ढेरों सलाम

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  2. तुम्‍हारे न होने का अहसास, टूटे पत्‍तों की तरह बिखरा है...। बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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  3. @sagebob,atulji and Dp Mishra ji..
    कृति को पसंद करने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद...
    उत्साहवर्धन का आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. वो पेड़ आज भी अकेला खड़ा है..
    उस मंजिल पर,जो हमने साथ देखी थी...
    सब कुछ तो है..
    पर तुम्हारे न होने का एहसास
    इस मंजिल पर, इस पेड़ के नीचे...
    टूटे पत्तों की तरह,बिखरा पड़ा है.......
    वो पेड़ आज भी अकेला खड़ा है..
    वो पेड़ आज भी अकेला खड़ा है..

    bahot hee sundar...
    aap dewariya ke hain :)
    wahi paas ke ek gaon bankata men mera nanihaal hai...aapse mil kar kuch apnepan ka ahsaas hua.
    mere blog par aa kar mujhe utsahit karne ke liye dhanyawaad.

    aapki kawita yathath ke behad kareeb lagi. aisa ek ped to har kisi ke jeevan men hota hai jo chahe anchahe kahi akela khada ah jaata hai.
    ishwar aapko aise hi manwiye bhawnao ko prastut karne ki shakti deta rahe.
    god bless u.

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  5. उम्दा रचना ... बधाई

    blogprahari.com पर अपना ब्लॉग रजिस्टर करें

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  6. @मनोज जी संजीव जी बहुत बहुत धन्यवाद
    @अनुप्रिया: समय देने के लिये आभार.. ये जान कर अच्छा लगा हमारे मूल स्थान में काफी समानता है..
    धन्यवाद
    @पद्म सिंह जी: रचना की भावना को समझने के लिए आभार..आप के ब्लॉग से मे जुड़ गया हूँ अब ...

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  7. पर तुम्हारे न होने का एहसास
    इस मंजिल पर, इस पेड़ के नीचे...
    टूटे पत्तों की तरह,बिखरा पड़ा है.......
    वो पेड़ आज भी अकेला खड़ा है..

    वाह आशु भाई क्या लिखा है , ...समय की कमी के कारण कुछ लिख नहीं सका इस पर परन्तु जल्द ही लिखूंगा..

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  8. पर तुम्हारे न होने का एहसास
    इस मंजिल पर, इस पेड़ के नीचे...
    टूटे पत्तों की तरह,बिखरा पड़ा है.......
    वो पेड़ आज भी अकेला खड़ा है..

    sundar rachna...:))

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  9. आपकी रचना अच्छी है,अकेलेपन को अच्छे से व्यक्त भी किया पर पेड अकेला कहां उसके साथ धूप, बारिश,हवा समस्त प्रकृति भी है न ।

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  10. पर्यावरण से सम्बंधित सुन्दर कविता.

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  11. धन्यवाद आप सभी प्रबुद्ध जनों का

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  12. ब्लॉग पर शायद पहली बार आया और मन को भा गया, ठीक ही लिखा है आपने कि काव्य सृजन आपके अंतर्मन कि आवाज है. मष्तिष्क और मन कि रचनाओं, उनके भाव बोध में अंतर होता है. कव हृदै दोनों ही प्रवृत्तियों का सम्वक है. उसे शब्दों में बांधता भी है लेकिन मन कि बात और है मष्तिष्क कि और...बधाई और बहुत दूर तक जाने, ऊंचाइयों को संश्पर्श करने कि शुभकामना भी. बहुत-बहुत प्यार आपकी स्पष्टवादिता का.

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  13. is kavita ke bare me kya kahu bahut kuch samete hua he ye......
    i also like to write poems visit my blog www.merepushp.blogspot.com

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ये कृति कैसी लगी आप अपने बहुमूल्य विचार यहाँ लिखें ..