इक निःशब्द उच्छवाश करता है ये एहसास ….. जैसे सभी के बीच रहते हुए, किसी ने ले लिया है वनवास| जैसे पिंजडे मे बंद पंछी.. फडफडाता है अपने पंखो को, यह सोच कर.. की उडने को खाली पड़ा है, विस्तृत आकाश|
इक निःशब्द उच्छवाश|
"आशुतोष नाथ तिवारी"
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