मित्रो,मेरी एक बुरी आदत है कविता लिखने से पहले प्रसंग लिखना.. हम सभी के जीवन में ऐसा समय आता है जब हम अपने ही रिश्तो,भाई बंधुओं को अपने सामने शत्रु बना पातें है...कई लोग महाभारत के अर्जुन की तरह इस कशमकश में पड़ जातें है की अपनों से कैसे टकराएँ कैसे उनपर शस्त्र उठाएं.. कलयुग के अर्जुन( शायद में उसमें अपनी छवि देखता हूँ,शायद आप भी) का कृष्ण से कुछ प्रश्न या दुविधा इस कविता के माध्यम से व्यक्त कर रहा हूँ..आशा है आप को पसंद आये...
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कुछ बातें कृष्ण से
हे कृष्ण मुझको बतला दो,
इस कलयुग के महाभारत में..
मैं कैसे शस्त्र उठाऊंगा…
जब नकुल भीम और कुंती को,
कौरव सेना में पाऊंगा………..
पांचाली हो या गांधारी,
या हो दुर्योधन अत्याचारी..
सब एक साथ हैं खड़े हुए….
हे कृष्ण यही है द्वन्द मेरा,
कोई कैसे इनसे युद्ध लड़े………….
हे केशव मुझको मुक्त करो,
इन धर्म सत्य की बातों से…
मुझको कुंठा से होती है,
इन गीता के उपदेशों * से….
इस युग की धर्मपरीक्षा में,
मैं अधर्मी ही कहाऊंगा…
ये नर नारी सब अपनें हैं,
मैं फिर वनवास को जाऊंगा…
तुम भी रणछोर कहाये थे,
मे तुमको ही दोहराऊंगा……
इस पांचजन्य के शंखनाद को, रोको
मेरी कुछ सुन लो…..
इस धर्म अधर्म की गीता में ,
जा कर कुछ नए श्लोक गढ़ों….
यदि गीता के परिशोधन में,
हे कृष्ण तुम्हे कठिनाई हो…
कौरव सेना तैयार खड़ी,
तुम जाकर उनके साथ मिलो..
फिर भूल तुम्हारी महिमा को,
मै फिर गांडीव उठाऊंगा…….
चाहे विजय मिले या वीरगति,
मैं तुम पर शस्त्र चलाऊंगा………
चाहे विजय मिले या वीरगति,
मैं तुम पर शस्त्र चलाऊंगा………
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माननीय कौशलेन्द्र जी के सुझाव का आभार
उनके कहे के अनुसार में पंक्तिया बदल रहा हूँ..
पूर्व पंक्ति: मुझको कुंठा सी होती है इन गीता के एहसासों से
संपादन के बाद: मुझको कुंठा सी होती है इन गीता के उपदेशों से..
धन्यवाद् कौशलेन्द्र जी
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यदि गीता के परिशोधन में,
जवाब देंहटाएंहे कृष्ण तुम्हे कठिनाई हो…
कौरव सेना तैयार खड़ी,
तुम जाकर उनके साथ मिलो..
फिर भूल तुम्हारी महिमा को,
मै फिर गांडीव उठाऊंगा…….
बहुत सशक्त रचना...सच आज कलियुग में अपने पराये में फर्क करना बहुत मुश्किल है..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंआज आवश्यकता इस बात की है
जवाब देंहटाएंकी सच को सच कह सके
और
झूट को झूट .
जब तक गलत का समर्थन करना बंद नहीं करेगे
गांडीव तो उठाना ही होगा.
लूण करण छाजेड
चाहे विजय मिले या वीरगति,
जवाब देंहटाएंमैं तुम पर शस्त्र चलाऊंगा………
चाहे विजय मिले या वीरगति,
मैं तुम पर शस्त्र चलाऊंगा………
बहुत सुंदर तरीके से आपने अपने विचार व्यक्त किए है --विजयश्री भव !
bahut sahi kahaa aapne...
जवाब देंहटाएंnice poem...
krupya mere blog pr bhi dhyaan de
http://mymaahi.blogspot.com/
sateek rachana!
जवाब देंहटाएंbilkul steek
जवाब देंहटाएंkavi mansik dwand mein ulajh jata hai....
द्वापर से अभी की परिस्थितियों में बहुत परिवर्तन हो गया है .......गांधी युग की तुलना में भी आज बहुत बदलाव पाते हैं आप .....अब गांधी भी तो उतने प्रासंगिक कहाँ रहे ?.....जो प्रासंगिक मानते हैं वे यूटोपियन हैं ....जिसका यथार्थ के धरातल पर कोई अर्थ नहीं.
जवाब देंहटाएं"इन गीता के अहसासों से" के स्थान पर यदि " इन गीता के उपदेशों से " कर दिया जाय तो कैसा रहेगा ?
सुंदर तरीके से अर्जुन की भावनाओं का चित्रण।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना।
शुभकामनाएं।
आशुतोष जी आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा. हिंदी लेखन को बढ़ावा देने के लिए तथा प्रत्येक भारतीय लेखको को एक मंच पर लाने के लिए " भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" का गठन किया गया है. आपसे अनुरोध है कि इस मंच का followers बन हमारा उत्साहवर्धन करें , हम आपका इंतजार करेंगे.
जवाब देंहटाएंहरीश सिंह.... संस्थापक/संयोजक "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच"
हमारा लिंक----- www.upkhabar.in/
जीवन की आवश्यक यथार्थ परिस्थितियों का अर्जुन के मनोभावों के रुप में सशक्त चित्रण.
जवाब देंहटाएंचाहे विजय मिले या वीरगति,
मैं तुम पर शस्त्र चलाऊंगा………
नये ब्लाग लेखकों के लिये उपयोगी सुझाव.
उन्नति के मार्ग में बाधक महारोग - क्या कहेंगे लोग ?
bas ek hi shabd likhungaa....."adbhut"!!
जवाब देंहटाएंbahut neek kavita ba baboo! dil khush ho gail. rachat rahaaa!... likhat rahaaa!...hamesha chhapat rahaaa baboo!...laxmi kant.
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचना..
जवाब देंहटाएंबधाई
अद्भूत और सटीक ...ऐसी कविता लिखने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकैलाश शर्मा जी: आप के अनुभवी व्यक्तिवा से संबल मिलना गर्व की बात है मेरे लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकुणाल भाई बहुत बहुत धन्यवाद
लूण करण छाजेड जी गांडीव तो हर युग में उठाया जाता रहा है..सिर्फ कृष्ण ही बदलते हैं..
दर्शन चाची: आशीर्वाद पा के प्रफुल्लित हूँ में आज.
@माहि,बेनामी दीपक बाबा : द्वन्द को समझने के लिए आभार
@कौशलेन्द्र ji: आप से एक ही प्रार्थना है की अगर मेरे अन्य रचनाओं में भी संपादन की जरुरत हो तो बता दें..बहुत आभार होगा..मैंने कृति आप के सुझाव के अनुसार सम्पादित कर दी है..
आनंद जी जुड़ गया हूँ संस्कृत ब्लॉग से
अतुल जी: आप आयें बहार आई
हरीश जी ब्लॉग से जुड़ गया हूँ अब धन्यवाद मंच देने के लिए
सुशिल जी,लक्ष्मीकांत जी राजीव जी वीणा जी मनीष जी: बहुत बहुत आभार..आप की प्रतिक्रिया बहुत बड़ी संबल है मेरे लेखन में..
Dear Ashutosh,
जवाब देंहटाएंI am delighted to read the epitome of the expressions quoted in your poems. I see that 58 people are following your work. Why not the entire nation, is my question!
Well, you are the Krishna and you are the Arjuna in this battle field! Fight is still due on you on either sides. :)
You may be a part of the united voice of Indian Youth to test your fighting spirit. If you feel that you have the words that we all need, revert with your interest. More we can discuss on further communication.
Regards
Deepak Chandra
dchandra@kriramedia.com
कृष्ण से प्रश्न , कृष्ण से झल्लाहट, कृष्ण पर आक्रोश - मन की इस विचलित स्थिति को कृष्ण से बढकर कोई समझ भी नहीं सकता , और निदान है ... किसी संशोधन की ज़रूरत नहीं , ना रणछोड़
जवाब देंहटाएंहोना है ... अन्याय अपने ही करते हैं तो निःसंदेह विरोध भी उनका ही होता है !
बहुत ही सशक्त एवं चिंतनीय रचना आशुतोष जी ! आज के युग की ही नहीं यह विडम्बना और दुविधा मानव सनातन काल से झेल रहा है जब उसके अपने ही उसके सामने प्रबलतम शत्रु बन कर आ खड़े होते हैं और उन पर वार करने में उसके अपने हाथ कांप जाते हैं ! बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आपको बहुत-बहुत बधाई एवं होली की शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंचाहे विजय मिले या वीरगति,
जवाब देंहटाएंमैं तुम पर शस्त्र चलाऊंगा………
चाहे विजय मिले या वीरगति,
मैं तुम पर शस्त्र चलाऊंगा………
बहुत सुंदर तरीके से आपने अपने विचार व्यक्त किए है
बहुत ओजपूर्ण सुन्दर कविता.
जवाब देंहटाएंआज अचानक ही यहाँ पहुंचना हुआ। बहुत सुन्दर कविता है , प्रभावशाली ।
जवाब देंहटाएं@रश्मी जी कविता का विश्लेषण के इस प्रारूप के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ब्लॉग पर समय देने के लिए
@आदरणीय साधना जी,
सौभाग्य मेरा जो आप आप ने यहाँ आकर अपना आशीर्वाद दिया..
@सुनील जी
आभार आप का जो आप ने कृति को समय दिया
@कुवर कुशुमेश जी: आते रहिये गलत सही जो भी हो बताते रहिये..
@दिव्या जी: आप शायद पहली बार आयीं मेरे ब्लॉग पर..आभार आप का कविता का भाव समझने के लिए ..
कितना सटीक कहा है, बहुत खूब की कृष्ण के खिलाफ गांडीव उठाने की बात कही। रही होना चाहिए। चाहे विजय मिले या वीरगति।
जवाब देंहटाएंआभार। बहुत बहुत सुन्दर।
आपके लेखन में नवीनता है पढकर अच्छा लगता है इसी तरह लिखते रहे शुभकामनाएं....
जवाब देंहटाएंवर्तमान परिपेक्ष्य में आप की यह कविता बेहद ही सटीक है. और युवा मन के द्वन्द को बेहद ही खूबसूरती से प्रकट कर रही है. सवाल वास्तव में काफी बड़ा है और विकत भी, कि अब क्या युग - परिवर्तन के लिए मात्र चाँद अर्जुन ही अकेले लड़ने को अभिशप्त रह गए हैं.
जवाब देंहटाएंविशेष उल्लेख:
जवाब देंहटाएंइस पांचजन्य के शंखनाद को, रोको
मेरी कुछ सुन लो…..
इस धर्म अधर्म की गीता में ,
जा कर कुछ नए श्लोक गढ़ों…
मुझे लगता है आपकी रचना का केन्द्र यहाँ है..
और कृष्ण तक अगर यह ओज पहुँच पाए,
तो समझिए की लोगों में
कृष्णत्व आये...
बकवास....
जवाब देंहटाएंअरुण जी,सुनीता जी पंकज जी...रितेश भाई......बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएं@श्याम गुप्ता जी:आप जैसे अनुभवी व्यक्तित्व का विचार पा के धन्य हुआ श्याम गुप्ता जी:
में तो एक अनभवहिन व्यक्ति हूँ जो कभी कभी अपनी भावनाओ को कलम से लिख देता हूँ..
कृपया अगर हो सके तो परामर्श दे की क्या बकवास है जिससे मैं भटकी हुए दिशा से खुद को सार्थक दिशा की ओर ले जा सकूँ..अगर ये परामर्श ब्लॉग पर दें तो शायद कुछ और अनुभवहीन अपने जीवन को सही दिशा दे सकेंगे
बहुत अच्छा लगा कम से कम एक व्यक्ति है जो अपनी मन की भावना को तो उकेर देता है..
आप के उत्तर और मार्गदर्शन का इंतजार रहेगा..
आप सभी को होली की शुभकामनायें..
आशु जी,
जवाब देंहटाएंअंतिम चार पंक्तिया मेरी समझ में नहीं आई है
अर्जुन क्रष्ण पर क्यों हतियार उठाना चाहता है
जरा खुलासा करेंगे क्या ?
आशुतोष,
जवाब देंहटाएं----आज के इस जीवन मूल्य व आदर्शों की गिरावट के काल में ,जो बस्तुतः हम अपने भारतीय धर्म से गिरे हैं इसलिये है...हिन्दू धर्म, अपितु धर्म की भी इस गिरावट के काल में भी--हमें स्थापित आदर्शों--गीता, क्र्ष्ण ..आदि के बारे में अनुचित बातें फ़ैलाने से बचना चाहिये--वैसे ही आज तमाम विदेशी अजेन्सियां, विधर्मी, अधर्मी लोग भारतीय सन्स्क्रिति, धर्म, दर्शन की सतत बुराई में लगे हुए है,उसको नीचा दिखाने में असफ़ल हैं पर जुटे हुए हैं , जो निश्चय ही विश्व को सत्य की व अच्छाई की राह दिखाने में एक मील के पत्थर हैं...( यह बुराई -अच्छाई का सतत युद्ध है ) अतः निश्चय ही हमें एसी मूर्खतापूर्ण, असंयमित विषय भावों से बचना चाहिये...सिर्फ़ कुछ नया कहें..लीक से हटकर कहने के लिये...चौन्काने के भाव के लिये कविता-भाव अनुचित हैं..
---सारी कविता अनर्गल, अयुक्तिपूर्ण भावों से युक्त है ...क्यों आप नई विरोधी गीता लिखेंगे..क्यों गीता से आपको कुन्ठा होती है....
--एक और पाठक सुमन जी ्का वक्तव्य देखिये..
--आपके ह्रदयाभाव अच्छे हो सकते हैं..परन्तु उदाहरण, कथोपकथन, वर्ण्य-भाव अनुचित, अस्पष्ट व सार्थकताहीन है...आशा है आगे ध्यान रखेंगे ...
---टिप्पणी कारों का क्या है अधिकाश बिना सोचे-समझे, विषय-भाव व दूर्गामी-प्रभाव संप्रेषण को सोचे बगैर, आधुनिक् दिखने की होड में-- हां जी हां जी ....
श्याम गुप्ता जी..आप के इस विचार से सहमत हूँ की कई एजेंसिया हिन्दू धर्म के बारे में अफवाह फ़ैलाने का कम कर रही है.आप जैसे अनुभवी व्यक्तित्व से प्रश्नोत्तर तो नहीं करना चाहता था मगर कृपया कृति के पहली पंक्तिया पढ़े शायद आप के शंका का समाधान हो जाए....
जवाब देंहटाएंइस कलयुग के महाभारत में....
मै लीक से नहीं हट रहा हूँ श्रीमान न ही कोई सनसनी फ़ैलाने के लिए किसी गलत विषय का चुनाव किया है..मैंने कलयुग की व्योस्था का वर्णन इस गीता के माध्यम से करने की कोशिश की है...मुझे बताएं आजकी व्योस्था में कृष्ण और शकुनी एक साथ हैं की नहीं.. चलिए मुझे ये बताएं आज की आज कितने ही कर्ण और पांचाली घूम रहें है.. श्रीमान इस कलयुग की गीता पूरी तरह बदल चुकी है..मैंने तो सिर्फ कुछ पंक्तिया जोड़ने के लिए कहा है...और श्रीमान गीता मेरी पसंदीदा पुस्तक है जो हमशा मुझे प्रेरणा देती है..उसकी दुर्गति नहीं देखि गयी..तो ये पंक्तिया लिख दी... शायद कुछ बड़े साहित्यकार लिखने के लिए लिखते होंगे मगर मेरा सामर्थ्य यही है की जो में लिखता हूँ वो मेरे ह्रदय के उदगार है..
आज के कलयुग के पात्रों का वर्तमान व्योस्था के परिवेश में अगर आप विश्लेसन कर दे तो आभार होगा आप का...
बाकि टिप्पड़ी लिखने वालों पर मेरा पूरा सम्मान है मगर श्रीमान जी हा जी हाँ मुझे भी पसंद नहीं है मगर शायद वो उनका विवेक है..इश्वर से प्रार्थना है की उनको सत्य लिखने की प्रेरणा दे
आप ने समय और मार्गदर्शन दिया बहुत बहुत आभार..आप के पुरे सम्मान के साथ कहता हूँ की आप से सहमत नहीं हूँ
होली की बहुत बहुत शुभकामनायें आप को आप के परिवार को...
--आपकी बात शकुनी-क्रिष्ण एक साथ...गलत है यदि कोई क्र्ष्ण है तो वह कभी शकुनी के साथ नहीं होगा किसी भी युग में.....बात वही है कि कोई गीता को अपना नहीं रहा तो कोई क्रषण भी नहीं सभी शकुनी हैं..तो दोष मनुश्य का अपना है..गीता या क्रष्ण का नहीं अतः वे आलोच्य नहीं..हास्य/व्यन्ग्य/सो कोल्ड यथार्थ कथन में भी नहीं...
जवाब देंहटाएं---आज कोई भी कर्ण व पान्चाली नहीं है( वे दोनों एक विशिष्ट व्यबस्था के आदर्श थे ) अपितु शूर्पण्खायें व दुर्योधन ही हैं......
---ह्रदय की बात,( ये मन बडा चंचल होता है गलत बातों को जल्दी ग्रहण करता है ), कहने का अर्थ यह नहीं कि कुछ भी कहा जा सकता है,..
--दुर्दशा के कारणों का विश्लेशण करना होता है कवि को और आदर्शों का स्थापन साहित्य का उद्देश्य है न कि आदर्शों का अपघात...कलयुग या यथार्थ कथन के नाम पर उन सर्वमान्य, विश्वमान्य सत्यों की बुराई करने से भ्रान्तियां फ़ैलती हैं और आदर्शों के प्रति अनास्था...जो सब बुराइयों की जड है...
---होली की भी( होली की बुराइयों की नहीं) कुछ लोग ( विग्यान से अन्भिग्य साइन्स साइन्स चिल्लाने वाले ब्लोग आदि..) बुराइयां करने पर तुले हैं जबकि यह एक पर्यावरण का ही त्योहार है...यह तभी होता है जब अग्यान्वश हम एसा अनर्गल, अनास्थामूलक साहित्य रचने लगते हैं...
---होली की शुभकामनायें..
गुप्ता जी:
जवाब देंहटाएंअगर आप ये कह रहें है की शकुनी और कृष्ण एक साथ नहीं है तथा सब शकुनी ही है..मैं भी तो यही कह रहा हूँ की कहाँ है वो कृष्ण सब तो शकुनी हो गएँ है इस कलयुग में...कहाँ है वो गीता के आदर्श वर्तमान परिवेश में...आप ने कहाँ आज तो कर्ण व पांचाली नहीं है ..बस दुर्योधन और शूर्पण्खायें ही है...
मुझे बताएं आप के कहे के अनुसार कृष्ण (या उनके आदर्शो के मानने वाले) नहीं, पांचाली नहीं कर्ण नहीं ....सिर्फ है दुर्योधन चलिए माना आप का कथन सत्य है तो कृष्ण पांचाली और कर्ण के बिना गीता कैसे लिखी जाएगी....और अगर लिखी गयी तो कलयुगी संपादन जरुरी होगा न...
मैं गीता की ना तो आलोचना कर रहा हूँ ना ही गीता की आलोचन करने का सामर्थ्य मुझमें नहीं है..शायद आप इतना गीता का ज्ञान भी ना हो पर थोडा बहुत जो पढ़ा है उससे प्रेरणा ही मिली है....
मैं तो यही व्यथा लिख रहा हूँ की आज के परिवेश में हमारा समाज इस हद तक पतन के गर्त में जा चुका है की गीता की महत्ता को समझ नहीं रहें है...उस समाज के लिए तो परिशोधित गीता ही चाहिए..जिसमें आदर्श बदल गएँ है...कृष्ण बदल गएँ है..
धर्म की बुराई और विशेषतः हिन्दू धर्म की जो सारे धर्मो का सृजक है मैं नहीं कर रहा हूँ मैं आज के कलयुगी पात्रों का वर्णन कर रहा हूँ....
मैं आप से इतना प्रतिवाद भी इसीलिए कर रहा हूँ की मेरे सभी लिखी गयी कृतियों में( शायद साहित्यिक दृष्टी से कहीं ना ठहरता हूँ) मुझे सबसे ज्यादा यही पसंद है..
होली या किसी हिन्दू पर्व या पूजा विधि पर मेरा कोई विवाद नहीं है सारी विधियाँ वैज्ञानिक दृष्टी से भी मान्य है..मैं ऐसे अनर्गल प्रलाप से सहमत नहीं रहता हूँ...जो आज कल के तथाकथित हिन्दू विरोधी लोग होंगे जो ऐसे लेख या विचार प्रकट करते होंगे..
आशा है मेरे अनुभवहीनता को देखते हुए आप मेरे तर्कों को कुतर्क की की श्रेणी में नहीं रखेंगे...
हाँ अगर आप धर्म के लिए इतने संवेदनशील है तो मेरे एक सहायता करें...अभी एक पत्रिका सरिता मार्च(द्वितीय) २०११ के अंक में पृष्ठ १३७-१४५ में एक लेख है द्रोणाचार्य माओवाद का सूत्रधार सुरेन्द्र कुमार शर्मा नामक एक नीच प्राणी का...कृपया मेरी सहयता करें उनके तर्कों की काट को किस तरह दूँ...उन्होंने तो हमारे सारे आदर्शों को कामातुर दोगला सिद्ध कर दिया है हमारे ही श्लोको से.......मेरा ज्ञान अल्प है शायद एक सुरेन्द्र शर्मा जैसे दोगले को आप चुप करा सकें तो मेरा प्रयास और आप का ज्ञान दोनों सार्थक हो जाए...अगर आप को ये कृति मिल जाए तो अच्छा है...प्रयाश करूँगा आप को जल्द ही स्कैन कर के भेज दूँ....
धन्यवाद रंगों का पर्व आप के लिए मंगलमय हो....
आभार आप का....बहुत अच्छा लगा आप का मार्गदर्शन पा के...
आशुतोष
बहुत खूब लिखा है आपने, आशुतोष जी.
जवाब देंहटाएंनकुल,भीम,कुंती,पांचाली या गांधारी भी अगर कौरव सेना में हो तो भी कृष्ण आपको नहीं रोकेंगे.
न ही गीता रोकेगी.
मोह ही को तो भंग करती है गीता.
गीता को बदलने की जरूरत नहीं है,समझने की जरूरत है.
शाश्वत है गीता का ज्ञान.
जल्दबाज़ी में नहीं लिखा गया है.
इसी लिए आपके कुछ पाठकों को तकलीफ हुई.
कुछ बुरा लगे तो मुआफ किजीये.
शुभ कामनाएं.
-नहीं गीता के संपादन की या उसपर/ क्रिष्ण पर कटाक्ष की आवश्यकता नहीं है उसपर चलने व चलने की प्रेरणा देने के गीत गाने की आवश्यकता है....
जवाब देंहटाएंठीक है भेजो...उनके कुतर्कों को भी देखते हैं...
जवाब देंहटाएंचलिए गुरुदेव.
जवाब देंहटाएंआप की भावनाओ को सत्य मानते हुए में इस विचार विमर्श को बंद करता हूँ..दो व्यक्तियों में मतभिन्नता हो सकती है..
आप से बहुत कुछ सिखने को मिला धन्यवाद..
मैं आप को कल तक वो लेख भेजूंगा..मैने इतना अध्ययन नहीं किया है की उनका काट निकाल पाऊं...आप की सहायता चाहिए..
में एक हिन्दू धर्म का कट्टर समर्थक हूँ..और वो लेख पूरी तरह हिन्दू विरोधी मानसिकता से लिखा गया है..आशा है आप का सहयोग मिलेगा
विशाल भाई..
जवाब देंहटाएंलगता है कलयुग में गीता लिखने का अधिकार किसी को नहीं है..
नहीं है दुर्योधनो को रोकने का...मैंने तो विवशता का वर्णन किया है..
ये विवशता तो अर्जुन ने भी दिखाई थी...मगर उनके पास कृष्ण थे..आज तो कृष्ण है ही नहीं...
धन्यवाद आप सभी का..
बेहतरीन संवाद .लग रहा है इसे पहले भी पढ़ा है ..क्या आप कहीं और भी लिखते हैं?
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा है आपने| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंआज अचानक ही यहाँ पहुंचना हुआ।
जवाब देंहटाएंआशुतोष जी!
पहली बार आपकी पोस्ट पे आया .अद्भुत जानकारी अच्छी लगी.
महर्षि दयानंद के बाद क्या कोई ऐसा संत हुआ है जिसने समाज विरोधी बातों को इतनी बेबाकी से बिना किसी भय के समाज के सामने रखा हो? इतिहास साक्षी है ऐसे महापुरुषों का सदा विरोध ही हुआ है.
आज हम सब जानते हैं सब समझते है किंतु सुधरने के लिए तैयार नहीं हैं. किसी को तो आगे आना ही होगा इन गलत बातों का विरोध करने के लिए. आपके इस सफल प्रयास के लिए आपक आभार. सत्य को स्वीकार न करने वालों के लिए सत्य कडवा ही होता है. .आशा है आप ज़माने की आंधियों से बिना विचलित हुवे सत्य के पथ पर इसी तरह आगे बढ़ते रहेंगे.
कृपया आप मेरे पोस्ट पर आयें तथा अपने विचारों से हमें अनुग्रहित करें .
अनुभवी नहीं हूँ .इस कविता ने कुछ लिखने को प्रेरित किया सो लिख रही हूँ .देश ,काल,परिस्थिति के अनुसार सच के मायने बदल जाते हैं तो वह क्या है जो शाश्वत है?हिन्दू विरोधी नहीं हूँ ,कट्टर भी नहीं हूँ .गीता के श्लोकों के अनुसार यदि व्यावहारिक जीवन को चलाना चाहे तो निश्चित ही कठिनाई होगी .इस कविता के भावों में मुझे कुछ बकवास नहीं दीखता है यदि प्रारंभ से पढें तो लेखक चिंतित है कि उसे अपने रक्त्सम्बंधियों (जो कि चचेरे नहीं हैं) पर शस्त्र उठाना पड़ा तो वो कैसे कर पायेगा अतः निवेदन कर रहा है कृष्ण से कि गीता के कुछ श्लोकों में संशोधन कर दें (बदलने को नहीं कह रहा ).यदि नहीं कर सकते हैं तो लेखक उन्ही के विरुद्ध शस्त्र उठा लेगा.अपनों के खिलाफ खड़ा होना अर्जुन के लिए आवश्यक था किन्तु क्या इस परिस्थिति को जन्म देने में उसकी कोई भागीदारी नहीं थी ?उस काल ,परिस्थिति के अनुसार वह सब सही था किन्तु क्या आज के अनुसार भी यही सही होगा ?आज तो धर्म की सही परिभाषा तक कोई दे नहीं सकता .सभी को अपने विचारो को प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता है और फिर वह धर्म ही क्या जिसके पट्टू किसी की एक विरोधी रचना(उनके अनुसार ) के आते ही व्यक्तियों की बदलती मानसिकता का दोषी उस रचना को मानने लगे .यदि कुछ शाश्वत है तो वह टिका ही रहेगा .
जवाब देंहटाएं@manasvinee mukul
जवाब देंहटाएंआप का बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने मेरे कविता लिखते समय के मनोभावों को इतनी सुन्दर तरीके से व्यक्त करने में सहायता की....
बिलकुल सत्य है की आप ने जैसा कहा उसी परिस्थिति एवं मनोभाव में ये कविता लिखी गयी थी...शायद मेरे पास इस कविता के विरोधियों से उस परिस्थिति का वर्णन करने का साहस नहीं था..इसलिए उसको आप की तरह व्यक्त नहीं कर पाया..हालाँकि कवि ने अपना द्वन्द कविता में लिखने का पूरा प्रयास किया है..
आभार आप का आपके अमूल्य समयके लिए..
धन्यवाद भाई आशुतोष जी
जवाब देंहटाएंयह तो चमत्कार हो गया. गीता क्लब के लिए हमें कुछ ऐसे गीता मर्मज्ञ की जरुरत थी, जो औरों को कुछ बता सकें. कृपया जरुर जल्दी ही इससे जुरें.
project co-ordinator
अशोक गुप्ता
विवेक विहार , दिल्ली
प्रिय भाई आशुतोष जी,
जवाब देंहटाएंआपके पत्र और विचारों के लिए हार्दिक धन्यवाद. ये बहुत बार विषय है , मैं दो केवल पहले दो श्लोकों द्वारा भाषा के सोंदर्य की बात कर रहा था.
फिर और बात भी करेंगें. आपका आना भी बाकी है .
आपका
अशोक गुप्ता
दिल्ली
वाह वाह वाह क्या कहूं मै जीवंत चित्रण और क्या ये बाते हैं शानदार बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक एवं जीवंत रचना !
जवाब देंहटाएंअति सराहनीय आपको सदर नमन
जवाब देंहटाएंअति सराहनीय आपको सदर नमन
जवाब देंहटाएं