tag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post3895606860845977614..comments2023-10-10T06:46:09.018-06:00Comments on आशुतोष की कवितायेँ : कुछ बातें कृष्ण सेUnknownnoreply@blogger.comBlogger50125tag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-25716371551499601512013-08-17T10:46:16.769-05:002013-08-17T10:46:16.769-05:00अति सराहनीय आपको सदर नमन अति सराहनीय आपको सदर नमन Sanjeev Kumar Singhhttps://www.blogger.com/profile/04585210673277072722noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-74316484825610339762013-08-17T10:45:56.628-05:002013-08-17T10:45:56.628-05:00अति सराहनीय आपको सदर नमन अति सराहनीय आपको सदर नमन Sanjeev Kumar Singhhttps://www.blogger.com/profile/04585210673277072722noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-89270685180964130022012-12-22T13:26:33.483-06:002012-12-22T13:26:33.483-06:00बहुत ही सटीक एवं जीवंत रचना !बहुत ही सटीक एवं जीवंत रचना !vishuhttps://www.blogger.com/profile/03733332594679099375noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-79554496404687703002011-07-09T07:40:00.730-05:002011-07-09T07:40:00.730-05:00वाह वाह वाह क्या कहूं मै जीवंत चित्रण और क्या ये ब...वाह वाह वाह क्या कहूं मै जीवंत चित्रण और क्या ये बाते हैं शानदार बेहतरीनArunesh c davehttps://www.blogger.com/profile/15937198978776148264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-76496056549260445022011-05-20T01:00:49.374-05:002011-05-20T01:00:49.374-05:00प्रिय भाई आशुतोष जी,
आपके पत्र और विचारों के लिए...प्रिय भाई आशुतोष जी, <br /><br />आपके पत्र और विचारों के लिए हार्दिक धन्यवाद. ये बहुत बार विषय है , मैं दो केवल पहले दो श्लोकों द्वारा भाषा के सोंदर्य की बात कर रहा था. <br /><br />फिर और बात भी करेंगें. आपका आना भी बाकी है . <br /><br />आपका <br />अशोक गुप्ता<br />दिल्लीhttps://worldisahome.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/01706669916955005947noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-14658239715676213572011-04-27T01:38:55.889-05:002011-04-27T01:38:55.889-05:00धन्यवाद भाई आशुतोष जी
यह तो चमत्कार हो गया. गीता...धन्यवाद भाई आशुतोष जी <br /><br />यह तो चमत्कार हो गया. गीता क्लब के लिए हमें कुछ ऐसे गीता मर्मज्ञ की जरुरत थी, जो औरों को कुछ बता सकें. कृपया जरुर जल्दी ही इससे जुरें. <br /> <br />project co-ordinator <br />अशोक गुप्ता <br />विवेक विहार , दिल्लीhttps://worldisahome.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/01706669916955005947noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-75058993689909021582011-04-07T07:47:07.646-05:002011-04-07T07:47:07.646-05:00@manasvinee mukul
आप का बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने ...@manasvinee mukul<br />आप का बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने मेरे कविता लिखते समय के मनोभावों को इतनी सुन्दर तरीके से व्यक्त करने में सहायता की....<br />बिलकुल सत्य है की आप ने जैसा कहा उसी परिस्थिति एवं मनोभाव में ये कविता लिखी गयी थी...शायद मेरे पास इस कविता के विरोधियों से उस परिस्थिति का वर्णन करने का साहस नहीं था..इसलिए उसको आप की तरह व्यक्त नहीं कर पाया..हालाँकि कवि ने अपना द्वन्द कविता में लिखने का पूरा प्रयास किया है..<br />आभार आप का आपके अमूल्य समयके लिए..आशुतोष की कलमhttps://www.blogger.com/profile/05182428076588668769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-2700419606111132142011-04-05T22:53:34.865-05:002011-04-05T22:53:34.865-05:00अनुभवी नहीं हूँ .इस कविता ने कुछ लिखने को प्रेरित ...अनुभवी नहीं हूँ .इस कविता ने कुछ लिखने को प्रेरित किया सो लिख रही हूँ .देश ,काल,परिस्थिति के अनुसार सच के मायने बदल जाते हैं तो वह क्या है जो शाश्वत है?हिन्दू विरोधी नहीं हूँ ,कट्टर भी नहीं हूँ .गीता के श्लोकों के अनुसार यदि व्यावहारिक जीवन को चलाना चाहे तो निश्चित ही कठिनाई होगी .इस कविता के भावों में मुझे कुछ बकवास नहीं दीखता है यदि प्रारंभ से पढें तो लेखक चिंतित है कि उसे अपने रक्त्सम्बंधियों (जो कि चचेरे नहीं हैं) पर शस्त्र उठाना पड़ा तो वो कैसे कर पायेगा अतः निवेदन कर रहा है कृष्ण से कि गीता के कुछ श्लोकों में संशोधन कर दें (बदलने को नहीं कह रहा ).यदि नहीं कर सकते हैं तो लेखक उन्ही के विरुद्ध शस्त्र उठा लेगा.अपनों के खिलाफ खड़ा होना अर्जुन के लिए आवश्यक था किन्तु क्या इस परिस्थिति को जन्म देने में उसकी कोई भागीदारी नहीं थी ?उस काल ,परिस्थिति के अनुसार वह सब सही था किन्तु क्या आज के अनुसार भी यही सही होगा ?आज तो धर्म की सही परिभाषा तक कोई दे नहीं सकता .सभी को अपने विचारो को प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता है और फिर वह धर्म ही क्या जिसके पट्टू किसी की एक विरोधी रचना(उनके अनुसार ) के आते ही व्यक्तियों की बदलती मानसिकता का दोषी उस रचना को मानने लगे .यदि कुछ शाश्वत है तो वह टिका ही रहेगा .manasvinee mukulhttps://www.blogger.com/profile/12226801210921254806noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-52051611036199609242011-03-27T01:26:41.005-06:002011-03-27T01:26:41.005-06:00आज अचानक ही यहाँ पहुंचना हुआ।
आशुतोष जी!
पहली बार ...आज अचानक ही यहाँ पहुंचना हुआ।<br />आशुतोष जी!<br />पहली बार आपकी पोस्ट पे आया .अद्भुत जानकारी अच्छी लगी.<br />महर्षि दयानंद के बाद क्या कोई ऐसा संत हुआ है जिसने समाज विरोधी बातों को इतनी बेबाकी से बिना किसी भय के समाज के सामने रखा हो? इतिहास साक्षी है ऐसे महापुरुषों का सदा विरोध ही हुआ है.<br />आज हम सब जानते हैं सब समझते है किंतु सुधरने के लिए तैयार नहीं हैं. किसी को तो आगे आना ही होगा इन गलत बातों का विरोध करने के लिए. आपके इस सफल प्रयास के लिए आपक आभार. सत्य को स्वीकार न करने वालों के लिए सत्य कडवा ही होता है. .आशा है आप ज़माने की आंधियों से बिना विचलित हुवे सत्य के पथ पर इसी तरह आगे बढ़ते रहेंगे.<br />कृपया आप मेरे पोस्ट पर आयें तथा अपने विचारों से हमें अनुग्रहित करें .मदन शर्माhttps://www.blogger.com/profile/07083187476096407948noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-65010755079044614462011-03-26T04:06:33.406-06:002011-03-26T04:06:33.406-06:00बहुत खूब लिखा है आपने| धन्यवाद|बहुत खूब लिखा है आपने| धन्यवाद|Patali-The-Villagehttps://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-73966374898114076372011-03-24T12:54:56.597-06:002011-03-24T12:54:56.597-06:00बेहतरीन संवाद .लग रहा है इसे पहले भी पढ़ा है ..क्य...बेहतरीन संवाद .लग रहा है इसे पहले भी पढ़ा है ..क्या आप कहीं और भी लिखते हैं?shikha varshneyhttps://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-70392945804560264102011-03-22T00:46:22.500-06:002011-03-22T00:46:22.500-06:00विशाल भाई..
लगता है कलयुग में गीता लिखने का अधिकार...विशाल भाई..<br />लगता है कलयुग में गीता लिखने का अधिकार किसी को नहीं है..<br />नहीं है दुर्योधनो को रोकने का...मैंने तो विवशता का वर्णन किया है..<br />ये विवशता तो अर्जुन ने भी दिखाई थी...मगर उनके पास कृष्ण थे..आज तो कृष्ण है ही नहीं...<br /><br />धन्यवाद आप सभी का..आशुतोष की कलमhttps://www.blogger.com/profile/05182428076588668769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-28636770078594075192011-03-22T00:37:59.325-06:002011-03-22T00:37:59.325-06:00चलिए गुरुदेव.
आप की भावनाओ को सत्य मानते हुए में इ...चलिए गुरुदेव.<br />आप की भावनाओ को सत्य मानते हुए में इस विचार विमर्श को बंद करता हूँ..दो व्यक्तियों में मतभिन्नता हो सकती है..<br />आप से बहुत कुछ सिखने को मिला धन्यवाद..<br />मैं आप को कल तक वो लेख भेजूंगा..मैने इतना अध्ययन नहीं किया है की उनका काट निकाल पाऊं...आप की सहायता चाहिए..<br />में एक हिन्दू धर्म का कट्टर समर्थक हूँ..और वो लेख पूरी तरह हिन्दू विरोधी मानसिकता से लिखा गया है..आशा है आप का सहयोग मिलेगाआशुतोष की कलमhttps://www.blogger.com/profile/05182428076588668769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-15918329032825029922011-03-22T00:26:53.522-06:002011-03-22T00:26:53.522-06:00ठीक है भेजो...उनके कुतर्कों को भी देखते हैं...ठीक है भेजो...उनके कुतर्कों को भी देखते हैं... shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-58622218375561754172011-03-22T00:23:34.613-06:002011-03-22T00:23:34.613-06:00-नहीं गीता के संपादन की या उसपर/ क्रिष्ण पर कटाक्ष...-नहीं गीता के संपादन की या उसपर/ क्रिष्ण पर कटाक्ष की आवश्यकता नहीं है उसपर चलने व चलने की प्रेरणा देने के गीत गाने की आवश्यकता है.... shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-54651588699842979722011-03-21T20:51:38.963-06:002011-03-21T20:51:38.963-06:00बहुत खूब लिखा है आपने, आशुतोष जी.
नकुल,भीम,कुंती,प...बहुत खूब लिखा है आपने, आशुतोष जी.<br />नकुल,भीम,कुंती,पांचाली या गांधारी भी अगर कौरव सेना में हो तो भी कृष्ण आपको नहीं रोकेंगे.<br />न ही गीता रोकेगी.<br />मोह ही को तो भंग करती है गीता.<br />गीता को बदलने की जरूरत नहीं है,समझने की जरूरत है.<br />शाश्वत है गीता का ज्ञान.<br />जल्दबाज़ी में नहीं लिखा गया है.<br />इसी लिए आपके कुछ पाठकों को तकलीफ हुई.<br />कुछ बुरा लगे तो मुआफ किजीये.<br />शुभ कामनाएं.विशालhttps://www.blogger.com/profile/06351646493594437643noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-57632947171921213202011-03-20T06:45:28.476-06:002011-03-20T06:45:28.476-06:00गुप्ता जी:
अगर आप ये कह रहें है की शकुनी और कृष्ण...गुप्ता जी: <br />अगर आप ये कह रहें है की शकुनी और कृष्ण एक साथ नहीं है तथा सब शकुनी ही है..मैं भी तो यही कह रहा हूँ की कहाँ है वो कृष्ण सब तो शकुनी हो गएँ है इस कलयुग में...कहाँ है वो गीता के आदर्श वर्तमान परिवेश में...आप ने कहाँ आज तो कर्ण व पांचाली नहीं है ..बस दुर्योधन और शूर्पण्खायें ही है...<br />मुझे बताएं आप के कहे के अनुसार कृष्ण (या उनके आदर्शो के मानने वाले) नहीं, पांचाली नहीं कर्ण नहीं ....सिर्फ है दुर्योधन चलिए माना आप का कथन सत्य है तो कृष्ण पांचाली और कर्ण के बिना गीता कैसे लिखी जाएगी....और अगर लिखी गयी तो कलयुगी संपादन जरुरी होगा न... <br />मैं गीता की ना तो आलोचना कर रहा हूँ ना ही गीता की आलोचन करने का सामर्थ्य मुझमें नहीं है..शायद आप इतना गीता का ज्ञान भी ना हो पर थोडा बहुत जो पढ़ा है उससे प्रेरणा ही मिली है....<br />मैं तो यही व्यथा लिख रहा हूँ की आज के परिवेश में हमारा समाज इस हद तक पतन के गर्त में जा चुका है की गीता की महत्ता को समझ नहीं रहें है...उस समाज के लिए तो परिशोधित गीता ही चाहिए..जिसमें आदर्श बदल गएँ है...कृष्ण बदल गएँ है..<br />धर्म की बुराई और विशेषतः हिन्दू धर्म की जो सारे धर्मो का सृजक है मैं नहीं कर रहा हूँ मैं आज के कलयुगी पात्रों का वर्णन कर रहा हूँ....<br />मैं आप से इतना प्रतिवाद भी इसीलिए कर रहा हूँ की मेरे सभी लिखी गयी कृतियों में( शायद साहित्यिक दृष्टी से कहीं ना ठहरता हूँ) मुझे सबसे ज्यादा यही पसंद है.. <br />होली या किसी हिन्दू पर्व या पूजा विधि पर मेरा कोई विवाद नहीं है सारी विधियाँ वैज्ञानिक दृष्टी से भी मान्य है..मैं ऐसे अनर्गल प्रलाप से सहमत नहीं रहता हूँ...जो आज कल के तथाकथित हिन्दू विरोधी लोग होंगे जो ऐसे लेख या विचार प्रकट करते होंगे..<br />आशा है मेरे अनुभवहीनता को देखते हुए आप मेरे तर्कों को कुतर्क की की श्रेणी में नहीं रखेंगे...<br />हाँ अगर आप धर्म के लिए इतने संवेदनशील है तो मेरे एक सहायता करें...अभी एक पत्रिका सरिता मार्च(द्वितीय) २०११ के अंक में पृष्ठ १३७-१४५ में एक लेख है द्रोणाचार्य माओवाद का सूत्रधार सुरेन्द्र कुमार शर्मा नामक एक नीच प्राणी का...कृपया मेरी सहयता करें उनके तर्कों की काट को किस तरह दूँ...उन्होंने तो हमारे सारे आदर्शों को कामातुर दोगला सिद्ध कर दिया है हमारे ही श्लोको से.......मेरा ज्ञान अल्प है शायद एक सुरेन्द्र शर्मा जैसे दोगले को आप चुप करा सकें तो मेरा प्रयास और आप का ज्ञान दोनों सार्थक हो जाए...अगर आप को ये कृति मिल जाए तो अच्छा है...प्रयाश करूँगा आप को जल्द ही स्कैन कर के भेज दूँ....<br />धन्यवाद रंगों का पर्व आप के लिए मंगलमय हो....<br />आभार आप का....बहुत अच्छा लगा आप का मार्गदर्शन पा के...<br /><br />आशुतोषआशुतोष की कलमhttps://www.blogger.com/profile/05182428076588668769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-26332625253017832122011-03-19T22:24:15.556-06:002011-03-19T22:24:15.556-06:00--आपकी बात शकुनी-क्रिष्ण एक साथ...गलत है यदि कोई क...--आपकी बात शकुनी-क्रिष्ण एक साथ...गलत है यदि कोई क्र्ष्ण है तो वह कभी शकुनी के साथ नहीं होगा किसी भी युग में.....बात वही है कि कोई गीता को अपना नहीं रहा तो कोई क्रषण भी नहीं सभी शकुनी हैं..तो दोष मनुश्य का अपना है..गीता या क्रष्ण का नहीं अतः वे आलोच्य नहीं..हास्य/व्यन्ग्य/सो कोल्ड यथार्थ कथन में भी नहीं...<br />---आज कोई भी कर्ण व पान्चाली नहीं है( वे दोनों एक विशिष्ट व्यबस्था के आदर्श थे ) अपितु शूर्पण्खायें व दुर्योधन ही हैं......<br />---ह्रदय की बात,( ये मन बडा चंचल होता है गलत बातों को जल्दी ग्रहण करता है ), कहने का अर्थ यह नहीं कि कुछ भी कहा जा सकता है,..<br />--दुर्दशा के कारणों का विश्लेशण करना होता है कवि को और आदर्शों का स्थापन साहित्य का उद्देश्य है न कि आदर्शों का अपघात...कलयुग या यथार्थ कथन के नाम पर उन सर्वमान्य, विश्वमान्य सत्यों की बुराई करने से भ्रान्तियां फ़ैलती हैं और आदर्शों के प्रति अनास्था...जो सब बुराइयों की जड है...<br />---होली की भी( होली की बुराइयों की नहीं) कुछ लोग ( विग्यान से अन्भिग्य साइन्स साइन्स चिल्लाने वाले ब्लोग आदि..) बुराइयां करने पर तुले हैं जबकि यह एक पर्यावरण का ही त्योहार है...यह तभी होता है जब अग्यान्वश हम एसा अनर्गल, अनास्थामूलक साहित्य रचने लगते हैं...<br />---होली की शुभकामनायें.. shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-66699261928074529692011-03-19T11:46:19.871-06:002011-03-19T11:46:19.871-06:00श्याम गुप्ता जी..आप के इस विचार से सहमत हूँ की कई...श्याम गुप्ता जी..आप के इस विचार से सहमत हूँ की कई एजेंसिया हिन्दू धर्म के बारे में अफवाह फ़ैलाने का कम कर रही है.आप जैसे अनुभवी व्यक्तित्व से प्रश्नोत्तर तो नहीं करना चाहता था मगर कृपया कृति के पहली पंक्तिया पढ़े शायद आप के शंका का समाधान हो जाए....<br />इस कलयुग के महाभारत में....<br />मै लीक से नहीं हट रहा हूँ श्रीमान न ही कोई सनसनी फ़ैलाने के लिए किसी गलत विषय का चुनाव किया है..मैंने कलयुग की व्योस्था का वर्णन इस गीता के माध्यम से करने की कोशिश की है...मुझे बताएं आजकी व्योस्था में कृष्ण और शकुनी एक साथ हैं की नहीं.. चलिए मुझे ये बताएं आज की आज कितने ही कर्ण और पांचाली घूम रहें है.. श्रीमान इस कलयुग की गीता पूरी तरह बदल चुकी है..मैंने तो सिर्फ कुछ पंक्तिया जोड़ने के लिए कहा है...और श्रीमान गीता मेरी पसंदीदा पुस्तक है जो हमशा मुझे प्रेरणा देती है..उसकी दुर्गति नहीं देखि गयी..तो ये पंक्तिया लिख दी... शायद कुछ बड़े साहित्यकार लिखने के लिए लिखते होंगे मगर मेरा सामर्थ्य यही है की जो में लिखता हूँ वो मेरे ह्रदय के उदगार है..<br />आज के कलयुग के पात्रों का वर्तमान व्योस्था के परिवेश में अगर आप विश्लेसन कर दे तो आभार होगा आप का...<br />बाकि टिप्पड़ी लिखने वालों पर मेरा पूरा सम्मान है मगर श्रीमान जी हा जी हाँ मुझे भी पसंद नहीं है मगर शायद वो उनका विवेक है..इश्वर से प्रार्थना है की उनको सत्य लिखने की प्रेरणा दे <br />आप ने समय और मार्गदर्शन दिया बहुत बहुत आभार..आप के पुरे सम्मान के साथ कहता हूँ की आप से सहमत नहीं हूँ<br />होली की बहुत बहुत शुभकामनायें आप को आप के परिवार को...आशुतोष की कलमhttps://www.blogger.com/profile/05182428076588668769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-46282902453564884232011-03-19T10:12:16.757-06:002011-03-19T10:12:16.757-06:00आशुतोष,
----आज के इस जीवन मूल्य व आदर्शों की गिरा...आशुतोष, <br />----आज के इस जीवन मूल्य व आदर्शों की गिरावट के काल में ,जो बस्तुतः हम अपने भारतीय धर्म से गिरे हैं इसलिये है...हिन्दू धर्म, अपितु धर्म की भी इस गिरावट के काल में भी--हमें स्थापित आदर्शों--गीता, क्र्ष्ण ..आदि के बारे में अनुचित बातें फ़ैलाने से बचना चाहिये--वैसे ही आज तमाम विदेशी अजेन्सियां, विधर्मी, अधर्मी लोग भारतीय सन्स्क्रिति, धर्म, दर्शन की सतत बुराई में लगे हुए है,उसको नीचा दिखाने में असफ़ल हैं पर जुटे हुए हैं , जो निश्चय ही विश्व को सत्य की व अच्छाई की राह दिखाने में एक मील के पत्थर हैं...( यह बुराई -अच्छाई का सतत युद्ध है ) अतः निश्चय ही हमें एसी मूर्खतापूर्ण, असंयमित विषय भावों से बचना चाहिये...सिर्फ़ कुछ नया कहें..लीक से हटकर कहने के लिये...चौन्काने के भाव के लिये कविता-भाव अनुचित हैं..<br />---सारी कविता अनर्गल, अयुक्तिपूर्ण भावों से युक्त है ...क्यों आप नई विरोधी गीता लिखेंगे..क्यों गीता से आपको कुन्ठा होती है....<br />--एक और पाठक सुमन जी ्का वक्तव्य देखिये..<br />--आपके ह्रदयाभाव अच्छे हो सकते हैं..परन्तु उदाहरण, कथोपकथन, वर्ण्य-भाव अनुचित, अस्पष्ट व सार्थकताहीन है...आशा है आगे ध्यान रखेंगे ...<br />---टिप्पणी कारों का क्या है अधिकाश बिना सोचे-समझे, विषय-भाव व दूर्गामी-प्रभाव संप्रेषण को सोचे बगैर, आधुनिक् दिखने की होड में-- हां जी हां जी .... shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-80797431985970284422011-03-19T07:01:50.726-06:002011-03-19T07:01:50.726-06:00आशु जी,
अंतिम चार पंक्तिया मेरी समझ में नहीं आई है...आशु जी,<br />अंतिम चार पंक्तिया मेरी समझ में नहीं आई है<br />अर्जुन क्रष्ण पर क्यों हतियार उठाना चाहता है<br />जरा खुलासा करेंगे क्या ?Sumanhttps://www.blogger.com/profile/02336964774907278426noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-37002174919443279212011-03-19T03:09:59.320-06:002011-03-19T03:09:59.320-06:00अरुण जी,सुनीता जी पंकज जी...रितेश भाई......बहुत बह...अरुण जी,सुनीता जी पंकज जी...रितेश भाई......बहुत बहुत धन्यवाद <br />@श्याम गुप्ता जी:आप जैसे अनुभवी व्यक्तित्व का विचार पा के धन्य हुआ श्याम गुप्ता जी:<br />में तो एक अनभवहिन व्यक्ति हूँ जो कभी कभी अपनी भावनाओ को कलम से लिख देता हूँ..<br />कृपया अगर हो सके तो परामर्श दे की क्या बकवास है जिससे मैं भटकी हुए दिशा से खुद को सार्थक दिशा की ओर ले जा सकूँ..अगर ये परामर्श ब्लॉग पर दें तो शायद कुछ और अनुभवहीन अपने जीवन को सही दिशा दे सकेंगे <br />बहुत अच्छा लगा कम से कम एक व्यक्ति है जो अपनी मन की भावना को तो उकेर देता है..<br />आप के उत्तर और मार्गदर्शन का इंतजार रहेगा..<br /><br />आप सभी को होली की शुभकामनायें..आशुतोष की कलमhttps://www.blogger.com/profile/05182428076588668769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-33571992740328042322011-03-19T02:55:37.849-06:002011-03-19T02:55:37.849-06:00बकवास....बकवास.... shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-87345015141670043792011-03-18T00:36:08.338-06:002011-03-18T00:36:08.338-06:00विशेष उल्लेख:
इस पांचजन्य के शंखनाद को, रोको
मेरी ...विशेष उल्लेख:<br />इस पांचजन्य के शंखनाद को, रोको<br />मेरी कुछ सुन लो…..<br />इस धर्म अधर्म की गीता में ,<br />जा कर कुछ नए श्लोक गढ़ों…<br /><br />मुझे लगता है आपकी रचना का केन्द्र यहाँ है..<br />और कृष्ण तक अगर यह ओज पहुँच पाए,<br />तो समझिए की लोगों में <br />कृष्णत्व आये...Reetesh Kharehttps://www.blogger.com/profile/11722875725649067490noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5070538284000029195.post-73419938586842684612011-03-17T23:24:16.691-06:002011-03-17T23:24:16.691-06:00वर्तमान परिपेक्ष्य में आप की यह कविता बेहद ही सटीक...वर्तमान परिपेक्ष्य में आप की यह कविता बेहद ही सटीक है. और युवा मन के द्वन्द को बेहद ही खूबसूरती से प्रकट कर रही है. सवाल वास्तव में काफी बड़ा है और विकत भी, कि अब क्या युग - परिवर्तन के लिए मात्र चाँद अर्जुन ही अकेले लड़ने को अभिशप्त रह गए हैं.पंकज वर्माhttps://www.blogger.com/profile/07174592948210012613noreply@blogger.com