बुधवार, 22 सितंबर 2010
एहसास
जब दर्द का ही एहसास नहीं……
तो अश्रु को व्यर्थ निमंत्रण क्यों?
जब मन मे किसी के प्यार नहीं….
तो आँखों का मूक निमंत्रण क्यों??
जब हृदय का जुडा न तार कोई….
तो तन का ब्यर्थ समर्पण क्यों?
जब रिश्तो मे विश्वास नहीं….
तो शब्दों का आडम्बर क्यों?
जब सूरज मे ही आग नहीं….
तो चन्दा से अग्नि का तर्पण क्यों?
जब सभी के चेहरे विकृत है….
तो रिश्तो का झूठा दर्पण क्यों?
जब मरकर सबको शांति मिले….
तो जीवन से आकर्षण क्यों???
जब दर्द का ही एहसास नहीं……
तो अश्रु को व्यर्थ निमंत्रण क्यों?
"आशुतोष नाथ तिवारी"
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