वो आखिरी सच था,
जब मैने कहा था...
तुम मेरी जिन्दगी हो,
तुम्हारे लम्स में मेरी धड़कने है..
वो आखिरी सच था,...........
वो आखिरी सच था,जब मैने ख्वाहिश की थी,
हर कदम तुम्हारे साथ चलने की...
तुम्हारे साथ जीने की,तुम्हारे साथ मरने की.......
ढूंढा था तुम्हारे कदमो के निशान को,
अपने ख्वाबो में ….
कही खोया,कभी पाया.
ख्वाबों में ही सही,.
तुम्हारे तबस्सुम को सजाया..
वो आखिरी सच था..................
मै खुश था या उदास??
शायद नहीं बुझ सकी थी,
मेरे अंतर्मन की प्यास..
अब हो चला है मुझको,
तुम्हारे न होने का एहसास
शायद मैं खुश हूँ आज??
शायद मैं खुश हूँ आज??
अब ना ही है कोई अनबुझी प्यास..
ना हो तुम,ना है तुम्हारा ख्वाब.
ना ही है तुम्हारे लम्स का विश्वास .....
अब नहीं है वो हाथो की लकीर,
जिसमे पहरो किया करता था,
तुम्हारे चेहरे की तलाश..
मै खुश हूँ ,बहुत खुश हूँ आज???
मै खुश हूँ ,बहुत खुश हूँ आज.
क्योकि वो आखिरी सच था.....
आखिरी सच था मेरा जिसमे था तुम्हारा एहसास!
तुम्हे पाने की आस..
शायद तब मै था उदास???
शायद तब मै था उदास ???
मै खुश हूँ बहुत खुश हूँ आज...
क्योकि वो सच,आखिरी सच था
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waah sir ji...
जवाब देंहटाएंkamaal kar diya ...
bahut sundar hai...
क्योकि वो सच,आखिरी सच था
जवाब देंहटाएंबेहतरीन.
thanks anju
जवाब देंहटाएंthanks deepak ji
मै खुश हूँ बहुत खुश हूँ आज...
जवाब देंहटाएंक्योकि वो सच,आखिरी सच था
Sach..kabhi kabhi nhi samajh aata..ki what we want..?true..
khubsurat .. :))
Thanks ANINDYAA..
जवाब देंहटाएंसच में.. कुछ 'आख़िरी सच' ऐसे भी होते हैं, जिनकी वज़ह से अचानक ही होठों पर तबस्सुम आ जाती है. इस कविता को पढ़कर ऐसी ही कोई पुरानी सच्चाई याद आ गयी. सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई. :)
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