किसको बोले किसे बताएं,
सबकी अपनी अपनी है व्यथा कथाएं॥
परछाइयों के ख्वाब में ,कुछ गम हुए ऐसे फकत,
हो चुकी है रात पर हम खड़े हैं,नजरे बिछायें॥
अरसा हुआ अब आता नहीं, कोई दिल के इस बाजार में,
एक दिन अचानक क्यों ये लगा,तुम सामने हो नजरे झुकाये॥
सोचा बहुत, ढूंढा बहुत, अब हो चुकी राते बहुत,
आओ किसी दरख़्त में ख्वाबो की कुछ शम्मा जलायें॥
ख्वाहिश तो थी जीने की पर,जीने से अब लगता है डर,
ले लो हमारी जान, शायद मरकर किसी को याद आयें॥
किसको बोले किसे बताएं…..
सबको अपनी ही किसी बात पे रोना आया ...
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