रविवार, 19 जून 2011

तुम्हारे लिए कुछ अनकही


मेरे अव्यक्त विचारों की,
माला कविता बन आएगी 
इन अधरों की कम्पित वीणा,
बस राग तुम्हारे गाएगी               
इस जनम की सिंदूरी रेखा,
मिट गयी प्रिये ,प्रतिवाद नहीं 
जन्मो और सदियों की कड़ियाँ ,
मैं तोड़ प्रिये फिर आऊंगा....
तब अरुणोदय की बेला में,
तुमको सिंदूर लगाऊंगा
जन्मो से कुंठित ये पीड़ा     
फिर,मोक्ष गति को पायेगी..
मेरे अव्यक्त विचारों की,
माला कविता बन आएगी ......