इतना आसान नहीं है,
एक सपने को बुनना,
एक सपना देखना..
और उसके सच होने से पहले,उस सपने को तोड़ देना.
इतना आसान नहीं है,
टूटे सपने के लिये उदास होना..
मगर इतना आसान भी नहीं है,
उस सपने की वेदना को सहना,
एक रिसते घाव को,यूँ ही छोड़ देना..
उम्र भर रह रह कर उठती हुई,
उस घाव की टीस को साथ लिये रहना..
इतना आसान भी नहीं है...
इतना आसान नहीं है,अपने आप से भागना..
अपने हाथों से अपने जिस्म के..
किसी हिस्से को काटना..
मगर,
मगर,
कोई रिसते घाव के साथ,कब तक जिये,
टूटे सपनो के लिए,कब तक पीड़ा सहे..
फिर भी सपने तो सपने होते हैं,
फिर भी सपने तो सपने होते हैं,
ये पहले भी आते रहें हें,
आगे भी बुने जायेंगे...
कुछ चेहरों को हंसी,
तो कुछ को अंतस की,अनन्त काल की पीड़ा दे जायेंगे...
इतना आसान नहीं है,
इस पीड़ा से पर पाना,
इतना आसान नहीं है,
जिन्दगी से हार जाना..
"आशुतोष नाथ तिवारी"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
ये कृति कैसी लगी आप अपने बहुमूल्य विचार यहाँ लिखें ..