शनिवार, 9 जुलाई 2011

रिश्तों की रेल


       हम दोनों,
जैसे रेल की दो पटरियां..
दूर तक चलतीं है साथ,
मगर नहीं होता है,
साथ होने का एहसास...
ना ही है पास आने की कोई चाह,
ना ही है दूर जाने की राह...
चाहे हो वह दिन का उजाला,
चाहे हो वो काली रात स्याह.
हम दोनों चलतें है एक साथ....
किसी ने एक पत्थर मारा तो,
दर्द की आवाज दूर तक जाती है..
हमारे रिश्तों की रेल भी तो,
इन्ही पटरियों से हो कर आती है..
        हम दोनों ...
जैसे रेल की दो पटरियां..